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________________ सप्तभंगी : प्रतीकात्मक और त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में अनेकान्त, स्याद्वाद, नयवाद और सप्तभंग एक दूसरे से इतने घनिष्ठ रूप सम्बन्धित हैं कि उन्हें प्रायः समानार्थक मान लिया जाता है जबकि उनमें आधारभूत भिन्नताएं हैं, जिनकी अवहेलना करने पर अनेक भ्रान्तियों का जन्म होता है । अनेकान्त वस्तुतत्व की अनन्त धर्मात्मकता का सूचक है तो स्याद्वाद ज्ञान की सापेक्षिकता एवं उसके विविध आयामों का । अनेकान्त का सम्बन्ध तत्व मीमांसा है, तो स्याद्वाद का सम्बन्ध ज्ञान मीमांसा । जहां तक सप्तभंगी और नयवाद का प्रश्न है, सप्तभंगी अनेकान्तिक वस्तु तत्व के सापेक्षिक ज्ञान की निर्दोष भाषायी अभिव्यक्ति का ढंग है, तो नयवाद कथन को अपने यथोचित सन्दर्भ में समझने या समझाने की एक दृष्टि है । प्रस्तुत निबन्ध में हमारा उद्देश्य केवल प्रतीकात्मक और त्रिमूल्यात्मक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में सप्तभंगी की समीक्षा तक सीमित है, अतः इन सब प्रश्नों पर विस्तृत विवेचना यहां सम्भव नहीं है । सप्तभंगी स्याद्वाद की भाषायी अभिव्यक्ति के सामान्य विकल्पों को प्रस्तुत करती है । हमारी भाषा विधि-निषेध की सीमाओं से घिरी हुई है " है " ओर “ नहीं है" हमारे कथनों के दो प्रारूप हैं, किन्तु कभी-कभी हम अपनी बात को स्पष्टतया " है” (विधि) और "नहीं है” (निषेध) की भाषा में प्रस्तुत करने में असमर्थ होते हैं अर्थात् सीमित शब्दावली की यह भाषा हमारी अनुभूति को प्रकट करने में असमर्थ होती है, ऐसी स्थिति में हम तीसरे विकल्प अवाच्य या अवक्तव्य का सहारा लेते हैं अर्थात शब्दों के माध्यम से "है" और "नहीं है" की भाषायी सीमा में बांधकर उसे कहा नहीं जा सकता है। इस प्रकार विधि, निषेध और अवक्तव्य सम्बन्धी भाषायी अभिव्यक्ति के तीन मूलभूत प्रारूपों और गणित शास्त्र के संयोग नियम (Law of combination) से बनने वाले उनके सम्भावित संयोगों के आधार पर सप्तभंगी के स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति आदि भंगो का निर्माण किया गया है, किन्तु उसका प्राण तो स्यात् शब्द की योजना में ही है । अतः सप्तभंगी सम्यक् अर्थ को समझने के लिए सबसे पहले स्यात् शब्द के वास्तविक अर्थ और उद्देश्य का निश्चय करना होगा । जैन ज्ञानदर्शन 231
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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