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________________ 13. नान्यया भाषया म्लेच्छ शक्यो ग्राहीयेतु यथा। न लोकिकमुते लोकः शक्यो ग्राहयितुं तथा।। व्यवहारमनाश्रित्य परमार्थो न देश्यते। परमार्थमनागम्य निर्वाणं नाधिगम्यते।। 14. दर्शन और चिन्तन पृ.-500 15. जीवे कम्मं बद्धं पुढें चेदि ववहारणय भणिदं। सुद्धणयस्स दु जीवे अबद्ध हवइ कम्म।। कम बद्धमबद्ध जीवे एवं तु जाणपक्खं। पक्खतिक्कतो पुण भण्णदि जो सो समयसारो।। -समयसार 141/142 (संस्कृत टीकावाली प्रति से) 16. अथ पुनर्बहुव्यक्तेरनेक विशेषस्याभेदता भेदराहित्यं तदपि निश्चविषयम, द्रव्स्य पदार्थस्य यन्नमल्यं निश्चय विषयम्, नैर्मल्यं तु विमलपरिणतिः बाह्यनिरपेक्ष परिणामः सोअपि निश्चयानाअर्था बोद्धव्यः। -अभि. रा. 4/2056 17. अण्ण निरावेरखो जो परिणामों सो सहावपज्जाओ । (अन्य निरपेक्षो यः परिणामः स स्वभावपर्यायः) -नियमसार 28 18. बाह्य निरपेक्षपरिणामः (जैन विचारणा में परिणाम शब्द मन-दशाओं का सूचक होता है) -अभिधानराजेन्द्र, खण्ड 4, पृ.-2056 19. दर्शन और चिन्तन, भाग 2, पृ.-499 20. बाह्यस्य आभ्यन्तरत्वं -अभिधान राजेन्द्र, खण्ड 4 पृ. - 2056 21. दर्शन और चिन्तन, भाग 2 पृ. - 499 22. व्यवहारा जनोदितम् (लोकाभिमतमेव व्यवहारः) -अभिधान राजेन्द्र खण्ड 4 पृ. -2956 23. क्षेत्र कालं प्राप्ययो यथा सम्भवति तेन तथा व्यवहारणीयम् - अभिधान राजेन्द्र खण्ड 4 -पृ. 107 24. यद्यपि शुद्धं तदपि लोकविरुद्धं न समाचरेत् । 25. दर्शन और चिन्तन, भाग 2 पृ.-498 26. जे सदगुरु उपदेशयी पाम्यो केवलज्ञानं। गुरु रह्या छद्मस्थ पण विनय करे भगवान ।। -आत्मसिद्धि शास्त्र 19 27. गीता 3/25 28. लघु स्वरूप न वृत्ति नुं ग्रा व्रत अभिमान। ग्रेह नहीं परमार्थने लेवा लौकिक मान।। 28 अथवा निश्चय नय ग्रहे मात्र शब्दनी माय । लोपे सद्व्यवहारने साधन रहित थाय।। 29 निश्चय वाणी सांभली साधन तजवां नोय। निश्चय राखी लक्षमां साधन करवां सोय।।131 नय निश्चय एकांत थी आमां नथी कहेल। एकांते व्यवहार नहीं वन्ने सपि रहेल ।।132।। - आत्मसिद्धि शास्त्र (राजेन्द्रभाई) 230 जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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