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________________ संदर्भ1. से किं तं प्रमाण? प्रमाणे चदविहे पण्णते तं जहाँ पच्चवक्खे, अणुमाणे ओवम्मे, आगमे, जहाँ अणुओगद्वारे। भगवती 5/4/191-192 2. तिविहे व्यवसाए पण्णते तं जहाँ-पच्चक्खे, पच्चइए, अनुगामिए। स्थानांग 185 3. अहवा हेउ चउविहे पण्णते तं जहाँ पच्चक्खे, अणुमाणे, ओवम्मे अ स्थानांग 338 4. मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽमिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् तत्वार्थ 1/1 5. तत्वार्थ भाष्य 1/15 6. भारतीय दर्शन का इतिहास, भाग 4 पृ. 190-191 7. मीमांसा कोष, पृ. 1638 8. तत्रोहो नाम प्रकृतावन्यथा दूषष्य विकृतावन्यथा भावः। 9. मीमांसा दर्शन 9-2, 1-1 10. न्याय सूत्र पर वात्सायने भाष्य 1/1/1, पृ. 53 11. न्याय सूत्र पर विश्वनाथ वृत्ति 1/1/40 12. न्याय सूत्र पर वात्सायन भाष्य, पृ. 320-21 00 जैन ज्ञानदर्शन 183
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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