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________________ जैनदर्शन में पंचज्ञानवाद जैन ज्ञान मीमांसा जैन न्यायशास्त्र को मूलतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है1. ज्ञान मीमांसा और 2. प्रमाण मीमांसा। ज्ञान मीमांसा और प्रमाण मीमांसा में जैन ज्ञान मीमांसा, प्रमाण मीमांसा की अपेक्षा प्राचीन और उनकी अपनी मौलिक है। जबकि जैन प्रमाण मीमांसा का विकास अन्य प्रमाण मीमांसाओं के प्रकाश में ही हुआ है। जैन ज्ञान मीमांसा की चर्चा मूलभूत जैन आगम साहित्य में भी है, जबकि जैन प्रमाण मीमांसा का प्रारम्भ सिद्धसेन दिवाकर के न्यायावतार से ही देखा जाता है। आगमों में एक दो सन्दों के अतिरिक्त प्रमाणशास्त्र की कोई चर्चा नहीं है। जैनों के प्रथम दार्शनिक ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र में भी प्रमाण मीमांसा की कोई विस्तृत चर्चा नहीं है। जैन प्रमाण मीमांसा पर कहीं बौद्धों का और कहीं नैयायिकी का प्रभाव देखा जाता है। प्रमाण मीमांसा में जैनों ने अपने अनेकांत सिद्धान्त का व्यापक प्रयोग किया है और इस क्षेत्र में रही हुई दो विरोधी धारणाओं को अनेकांत दृष्टि से समन्वित करने का प्रयास किया है। जैन ज्ञान मीमांसा के उल्लेख प्राकृत आगम साहित्य में विस्तार से मिलता हैं। नन्दीसूत्र तो पूर्णतः जैन ज्ञान मीमांसा का ही ग्रन्थ है। किन्तु इस परवर्ती आगम ग्रन्थ की अपेक्षा भी प्राचीन स्तर के भगवतीसूत्र और प्रज्ञापनासूत्र में भी पंचज्ञानों की चर्चा मिलती है। तत्त्वार्थसूत्र भी पंच ज्ञानों की चर्चा प्रमाण चर्चा की अपेक्षा विस्तार से करता है, जबकि प्रमाण चर्चा में ज्ञान को प्रमाण कहकर अपनी बात समाप्त कर देता है। यहाँ यह प्रश्न भी उठता है कि ज्ञान या प्रमाण क्या है? इसका संक्षिप्त उत्तर यह है कि जो बोध (आत्म संवेदन) संशय, विपर्यय (विपरीत ज्ञान) और अनध्यवसाय रूप, आत्म सजगता से रहित अर्थात् सहित हो वह अज्ञान है और अप्रमाण है। इसके विपरीत जो बोध है, वही ज्ञान है, इसे अभिनिबोधिक ज्ञान भी कहते हैं। ___ जैन परम्परा में ज्ञान पांच माने गये है - 1. मतिज्ञान, 2. श्रुतज्ञान 3. अवधिज्ञान 4. मन पर्यायज्ञान और 5.केवलज्ञान। इन पाँच ज्ञानों में मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान-ये तीन ज्ञान मिथ्यादृष्टि व्यक्तियों की अपेक्षा से अज्ञान जैन ज्ञानदर्शन 115
SR No.006274
Book TitleJain Darshan Me Tattva Aur Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Ambikadutt Sharma, Pradipkumar Khare
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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