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3.4. हरिभद्र के धर्मदर्शन में क्रांतिकारी तत्त्व 3.5. हरिभद्र की क्रान्तदर्शी दृष्टि 3.6. हरिभद्र के धूर्ताख्यान का मूल स्रोत एवं वैज्ञानिक महत्व 3.7. जैन दार्शनिकों का अन्य दर्शनों को त्रिविध अवदान 3.8. सामाजिक समस्याओं के समाधान में जैनधर्म का योगदान 3.9. जैन दर्शन का कर्म सिद्धान्त 3.10. जैन, बौद्ध और गीता के दर्शन में कर्म का अशुभत्व, शुभत्व
और शुद्धत्व 3.11. जैन, बौद्ध और गीता दर्शन में मोक्ष का स्वरूप 3.12. गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव और विकास 3.13. संयम : जीवन का सम्यक् दृष्टिकोण । 3.14. जैन-योग-पद्धति और उस पर अन्य योग-पद्धतियों
का प्रभाव 3.15. तंत्र साधना और जैन जीवन-दृष्टि
3.16. ऋषिभाषित का धर्म संकुल 4. जैन अनेकान्तदर्शन
4.1. जैन दार्शन में अनेकान्त : सिद्धान्त और व्यवहार 5. जैनागम और चार्वाक दर्शन
5.1. प्राचीन जैनागमों में चार्वाक दर्शन का प्रस्तुतिकरण 5.2. ऋषिभाषित में प्रस्तुत चार्वाक दर्शन
5.3. राजप्रश्नीय सूत्र में चार्वाकमत का प्रस्तुतिकरण एवं समीक्षा 6. जैन दृष्टि में बौद्ध धर्मदर्शन
6.1. भारतीय संस्कृति के दो प्रमुख घटकों का सहसम्बन्ध । 6.2. भारतीय दार्शनिक ग्रन्थों में प्रतिपादित बौद्ध धर्म एवं दर्शन 6.3. महायान बौद्ध धर्म की समन्वयात्मक जीवन-दृष्टि 6.4. बौद्ध धर्म में सामाजिक चेतना
6.5. धर्मनिरपेक्षता और बौद्ध धर्म 7. प्रो. सागरमल जैन का जीवनवृत्त
7.1. प्रो.सागरमल जैन का अद्यावधि जीवनवृत्त
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