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इसके पाँच प्रकार हैं- 1. औत्करिक- चीरे या खोदे जाने पर होने वाले लकड़ी, पत्थर आदि के बड़े टुकड़े 2. चौर्णिक - कण-कण रूप में चूर्ण हो जाना, जैसे गेहूँ, जौ आदि का आटा 3. खण्ड-टुकड़े-टुकड़े होकर टूट जाना, जैसे- घड़े के कपालादि; 4. प्रतर-परतें या तहें निकलना, जैसे- भोजपत्र अभ्रक आदि; 5. अनुतट-छाल निकलना, जैसे- बाँस, ईख आदि ।
इसी प्रकार तम अर्थात् अन्धकार, देखने में रुकावट डालने वाला, प्रकाश का विरोधी एक परिणाम - विशेष है ।
छाया प्रकाश के ऊपर आवरण आ जाने से होती है । इसके दो प्रकार हैंदर्पण आदि स्वच्छ पदार्थों में पड़ने वाला मुखादि का प्रतिबिम्ब, ज्यों-का-त्यों दिखाई देता है और अन्य अस्वच्छ वस्तुओं पर पड़ने वाली परछाई प्रतिबिम्बरूप छाया है । सूर्य आदि का उष्ण प्रकाश ताप आतप और चन्द्र, मणि, खद्योत आदि का अनुष्ण (शीतल) प्रकाश उद्योत है।
स्पर्श, वर्ण, गन्ध, रस, शब्द आदि सभी पर्यायें पुद्गल के कार्य होने से पौद्गलिक मानी गयी हैं । (तत्त्वार्थसूत्र, पं. सुखलाल जी, पृ. 129-30)
ज्ञातव्य है कि पुद्गल में मृदु, कर्कश, हल्का और भारी - चार स्पर्श भी होते हैं। ये चार स्पर्श तभी संभव होते हैं, जब परमाणुओं से स्कंधों की रचना होती है और तभी उनमें मृदु, कठोर, हल्के और भारी गुण भी प्रकट हो जाते हैं । परमाणु एकप्रदेशी होता है, जबकि स्कंध में दो या दो से अधिक असंख्य प्रदेश तक भी हो सकते हैं। स्कंध, स्कंध-देश, स्कंध - प्रदेश और परमाणु- ये चार पुद्गल द्रव्य के विभाग हैं। इनमें परमाणु निरवयव है । आगम में उसे आदि, मध्य और अन्त से रहित बताया गया है, जबकि स्कंध में आदि और अन्त होते हैं । न केवल भौतिक वस्तुएँ, अपितु शरीर, इन्द्रियाँ और मन भी स्कंधों का ही खेल हैं ।
स्कंधों के प्रकार
जैन-दर्शन में स्कंध के निम्न 6 प्रकार माने गये हैं
1. स्थूल - स्थूल इस वर्ग के अन्तर्गत विश्व के समस्त ठोस पदार्थ आते हैं। इस वर्ग के स्कंधों की विशेषता यह है कि वे छिन्न-भिन्न होने पर मिलने में असमर्थ होते हैं, जैसे-पत्थर ।
2. स्थूल - जो स्कंध छिन्न-भिन्न होने पर स्वंय आपस में मिल जाते हैं, वे स्थूल स्कंध कहे जाते हैं। इसके अन्तर्गत विश्व के तरल द्रव्य आते हैं, जैसे- पानी, तेल आदि ।
3. स्थूल - स्थूल- जो पुद्गल - स्कंन्ध छिन्न-भिन्न नहीं किये जा सकते हों, अथवा जिनका ग्रहण या लाना- ले जाना संभव नहीं हो, किन्तु जो चक्षु इन्द्रिय के
जैन दर्शन में तत्त्व और ज्ञान
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