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________________ अवतरण वर्तमान काल में प. पू. 108 आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज का ज्ञान के क्षेत्र में युगान्तरकारी महात्मा के रूप में यश विख्यात है । इनके वाङ्मय का समुचित प्रचार-प्रसार का महनीय कार्य प. पू. आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के प्रधान शिष्य प. पू. मुनिराज श्री सुधासागरजी महाराज के पावन प्रयत्नों के सम्पादित किया जा रहा है । इन्हीं की प्रेरणा से आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र, ब्यावर, पृ. ज्ञानसागरजी महाराज के द्वारा स्पष्ट विविधविषयों को पल्लवित करने हेतु विद्वज्जनों से बड़े शोध-प्रबन्ध भी रचित किये जाने का कार्य निरन्तर कर रहा है । पिछले वर्ष 1995 में पू. सुधासागरजी महाराज के आशीर्वाद के भाई पं. अरुणकुमारजी शास्त्री, ब्वावर द्वारा प्रस्तुत महानिबन्ध लिखने हेतु आग्रहपूर्ण पत्र प्राप्त हुआ था । साथ ही मदनगंज-किशनगढ़ में 'जयोदय-संगोष्ठी' के अवसर पर पुनः स्मरण भी दिलाया गया । इसी गतिविधि के फलस्वरूप यह ग्रन्थ अवतरित हुआ है । इसमें प. पू. दिगम्बराचार्य 108 आचार्य ज्ञानसागरजी महाराज के ज्ञान प्रसार विषयक अभीष्ट रुचि के प्रति मेरी श्रद्धा पू. सुधासागरजी महाराज के चरणों में विनय से संश्लिष्ट होती हुई प्रधान कारण रही है । अज्ञानता वश मेरी त्रुटियों को पाठकगण क्षमा करेंगे एवं विद्वज्जन आवश्यक सुझाव भी देंगे ऐसा मुझे विश्वास है । दि. 9.9.96 शिवचरन लाल जैन
SR No.006273
Book TitleNay Nirupan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivcharanlal Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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