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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी २ ६७ २. छ: द्रव्य (गा० १) : प्रथम ढाल में जीव को द्रव्य कहा है'। यहाँ अजीव-अचैतन धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल को द्रव्य कहा है। इस तरह स्वामी जी के निरूपण के अनुसार द्रव्यों की संख्या छः होती है। इस निरूपण के आधार आगम हैं। उदाहरण स्वरूप उत्तराध्ययन में स्पष्टतः द्रव्यों की संख्या छ: मिलती है। वाचक उमास्वाति द्रव्यों की संख्या पाँच ही मानते थे। काल को उन्होंने विकल्प मत से द्रव्य बतलाया है। दिगम्बर आचार्य कुन्दकुन्द और नेमिचंद्र ने द्रव्यों की संख्या छः ही कही है। समवायाङ्ग में कहा है-“एगे अणाया' (सम० सू० १) अर्थात् अनात्मा एक है। अनात्मा अर्थात् अजीव । स्वामीजी ने धर्मास्तिकाय आदि पाँच अजीव पदार्थ बतलाये हैं और समवायांग में 'अनात्मा एक है' ऐसा प्ररूपण है। प्रश्न हो सकता है कि यह विभेद क्यों ? इसका उत्तर इस प्रकार है-धर्मास्तिकाय आदि पांचों पदार्थों का सामान्य गुण अचैतन्य है। इस सामान्य गुण के कारण इन पांचों को एक अनात्म कोटि का कहने में कोई दोष नहीं । अनन्त जीवों को चैतन्य गुण की अपेक्षा एक जैसे मान कहा है-'एगे आया' (सम० सू० १) उसी तरह अचैतन्य गुण के कारण पांच को एक मान कहा है-“एगे अणाया'। इसी विविक्षा से आगमों में छ: द्रव्यों का विवेचन जीवाजीवविभक्ति के रूप में प्राप्त होता है। दिगम्बर आचार्यों ने भी इसी अपेक्षा से द्रव्य दो कहे हैं। जीव चेतन और १. ढा० १ गा० १: २. उत्त० २८.८ : धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इक्किक्कमाहियं । अणन्ताणि च दबाणि कालो पुग्गल-जन्तवो।। ३. तत्त्वार्थसूत्र अ० ५ : अजीवकाया धर्माधर्माकाश पुद्गलः ।।१।। द्रव्याणि जीवाश्च ।।२।। कालश्चेत्ये के।।३।। ४. (क) पञ्चास्तिकायः अधि० १, ६ : ते चेव अत्थिकाया तेकालियभावपरिणदा णिच्चा। गच्छंति दवियभावं परियट्टणलिंगसुंजत्ता।। (ख) द्रव्यसंग्रह २३ : एवं छब्भेयमिदं जीवाजीवपभेददो दव्वं । उत्त० ३६ : २-६
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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