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________________ टिप्पणियाँ १. अजीव पदार्थ (दो० १) : पदार्थ राशियां दो हैं-(१) जीव और (२) अजीव' | संसार की जितनी भी वस्तुएँ हैं उन्हें इन्हीं दो भागों में बाँट सकते हैं। जीव पदार्थ का वर्णन पहली ढाल में किया जा चुका है। दूसरी ढाल में अजीव पदार्थ का विवेचन किया गया है। अजीव पदार्थ जीव पदार्थ का प्रतिपक्षी है । जो जीव न हो वह अजीव है। जीव चेतन है। वह उपयोग-ज्ञान और दर्शन-लक्षण से संयुक्त होता है। इन्द्रियों और शरीर के अन्दर ज्ञानवान जो पदार्थ अनुभव में आता है, वही जीव है। जो सब चीजों को जान और देख सकता है, सुख की इच्छा करता है और दुःख से भय करता है, जो हिताहित करता है और कर्मों का फल भोगता है, वह जीव पदार्थ है। इसके विपरीत जिसमें चेतन गुण का अभाव हो वह अजीव है। जिस पदार्थ में सुख और दुःख का ज्ञान नहीं है, जिसमें हित की इच्छा और अनहित से भय नहीं हैं, वह अजीव पदार्थ है। १. (क) ठाणाङ्ग २, ४, ६५ : दो रासी पं० तं० जीवरासी चेव अजीवरासी चेव (ख) पन्नवणा १ : पन्नवणा दुविहा पन्नत्ता। तं जहा जीवपन्नवणा य अजीवपन्न्वणा य २. ठाणाङ्ग २, १, ५७ : जदत्थि णं लोगे तं सव्वं दुपओआरं, तंजहा जीवच्चेव अजीवच्चेव ३. पञ्चास्तिकाय २.१२२ : जाणादि पस्सदि सव् इच्छदि सुक्खं विभेदि दुक्खादो। कुव्वदि हिदमहिदं वा भुंजदि जीवो फलं तेसि।। ४. पञ्चास्तिकाय : २.१२४, १२५ : x1 तेसि अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा।। सुहदुक्खजाणणा वा हिदपरयिम्मं च अहिदभीरुत्तं । जस्स ण विज्जदि णिच्चं तं समणा विंति अज्जीवं ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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