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________________ ६२ नव पदार्थ ५१. समचे पुद्गल तीन लोक में, खाली ठोर जायगां नहीं काय जी। ते आमां स्हामां फिर रह्या लोक में, एक ठाम रहे नहीं ताय जी।। ५२. थित च्यारूंइ भेदां तणी, जगन तो एक समो छै ताम जी। उतकष्टी असंख्याता काल नी, ए भावे पुद्गल तणा परिणाम जी।। ५३. पुद्गल नो सभाव छै एहवो, अनंता गले ने मिल जाय जी। तिण सूं पुद्गल रा भाव. री, अनंती कही परजाय जी।। ५४. जे जे वस्तु नीपजे पुद्गल तणी, ते ते सगली विललाय जी। त्यांने भावे पुद्गल जिणवर कह्या द्रव्य तो ज्यूं रहै ताय जी।। ५५. आठ कर्म में शरीर असासता, ओ नीपना हुआ छै ताय जी। तिण सूं भाव पुद्गल कह्या तेहनें, द्रव्य तो नीपजायो नहीं जाय जी।। ५६. छाया तावड़ो प्रभा कंत छै, ए सगला छै भाव पुद्गल जांण जी। वल अंधारो ने उद्योत छै, ए पुद्गल भाव पिछांण जी।। ५७. हलको भारी सुहालो खरदरो, गोल बटादिक पांच संठाण जी। घड़ा पडाह ने वस्त्रादि, ए सगला भावे पुद्गल जांण जी।। ५८. घीरत गुलादिक दसूं विगे, भोजनादि सर्व वखांण जी। वले सस्त्र विवध प्रकार ना, ए सगला भावे पुद्गल जांण जी।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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