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अजीव पदार्थ
पुद्गल : गतिमान
द्रव्य
५१. पुद्गल तीनों लोक में सर्वत्र भरे हुए हैं। कोई भी ठौर नहीं
जो पुद्गल से खाली हो | ये पुद्गल लोक में इधरउधर गतिशील हैं। वे एक स्थान पर स्थिर नहीं रहते।
पुद्गल के भेदों की स्थिति
५२. इन चारों ही भेदों की कम-से-कम स्थिति एक समय की
और अधिक-से-अधिक असंख्यात काल की है२८ | पुद्गलों के ये परिणाम भाव पुद्गल हैं।
५३. पुद्गल का स्वभाव ही ऐसा है कि अनन्त बिछुड़ते और पुद्गल का स्वभाव
परस्पर मिल जाते हैं। इसी कारण इन पुद्गलों के भावों की अनन्त पर्याय कही गयी है |
५४. पुदगल से जो वस्तुएँ बनती हैं वे सभी विनाश को प्राप्त ।
हो जाती हैं। इनको भगवान ने भाव पुद्गल कहा है। द्रव्य पुद्गल तो ज्यों-के-त्यों रहते हैं ।
भाव पुद्गल : विनाश शील
१५. आठ कर्म और पाँचों शरीर पुद्गल से उत्पन्न हैं और
अशाश्वत हैं। इसीलिए भगवान ने इनको भाव पुद्गल कहा है। द्रव्य पुद्गल उत्पन्न नहीं किया जा सकता।
भाव पुद्गल के
उदाहरण
५६. छाया, धूप, प्रकाश, कांति इन सब को पुद्गल के लक्षण
जानो। इसी प्रकार अंधकार और उद्योत ये भी भाव पुद्गल
५७. हल्कापन, भारीपन, खुरदरापन और चिकनापन आदि तथा
गोलादि पाँच आकाश तथा घड़े, वस्त्रादि सब चीजें भाव पुद्गल हैं।
५८. घृत, गुड़ आदि दसों विकृतियाँ तथा सब तरह के भोजन
तथा नाना प्रकार के शस्त्र इन सब को भाव पुद्गल समझोग।