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________________ अजीव पदार्थ पुद्गल : रूपी द्रव्य ४३. अरूपी काल द्रव्य का यह संक्षेप में विवचेन किया है। अब रूपी पुद्गल का विस्तार ध्यान पूर्वक सुनो। ४४. पुद्गल द्रव्य अनन्त कहे गये हैं। इन द्रव्यों को शाश्वत समझो। भाव पुद्गल अशाश्वत हैं। बुद्धिमान द्रव्य और भाव पुद्गल की पहिचान करें। द्रव्य भाव पुद्गल की शाश्वतता अशाश्वतता (गा० ४४-४५) ४५. पुद्गल द्रव्य अनन्त कहे हैं। वे एक भी घटते-बढ़ते नहीं। घट-बढ़ तो भाव पुद्गलों की होती है, जिनके अनेक भेद हैं | पुद्गल के भेद ४६. पुद्गल द्रवय की जिन भगवान ने चार भेद कहे हैं- (१) स्कंध, (२) देश, (३) प्रदेश और (४) परमाणु । परमाणु की यह विशेषता यह है : परमाणु (गा० ४७-४८) ४७. स्कंध से लगा रहता है तब तक प्रदेश होता है और यही प्रदेश जब स्कंध से छूट कर अकेला हो जाता है तब उसको परमाणु कहा जाता है। प्रदेश और परमाणु में केवल इतना-सा ही भेद है और कुछ फर्क नहीं। ४८. परमाणु और प्रदेश तुल्य हैं। इमसें जरा भी शंका मत लाओ। परमाणु आँगुल के असंख्यातवें भाग के बराबर होता है। चतुर और विज्ञ लोग परमाणु को पहचानें। ४६. पुद्गल का उत्कृष्ट स्कंध सम्पूर्ण लोक प्रमाण होता है और जघन्य स्कंध आँगुल के असंख्यातवें भाग जितना होता है। उत्कृष्ट स्कंध : लोक-प्रमाण (गा०४६-५०) ५०. अनन्त प्रदेशी स्कंध एक प्रदेश-प्रमाण आकाश (क्षेत्र) में समा जाता है और वही पुद्गल स्कंध्र फैल कर विस्तृत हो सम्पूर्ण लोक प्रमाण हो जाता है |
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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