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________________ ५८ नव पदार्थ ३५. तिणसुं मापो तीर्थंकर बांधीयो, जगन समो थाप्यो एक जी। जगन थित कार्य ने द्रव्य नी, तिण सूं इधकारा भेद अनेक जी।। ३६. असंख्याता समा री थापी, आवली, पछे मोहरत पोहर दिन रात जी। __ पख मास रित अयन थापीया, दोय अयना रो वरस विख्यात जी।। ३७. इम कहितां कहितां पल सागरू, उरासर्पणी ने अवसर्पणी जाण जी। जाव पुद्गल परावर्तन थापीयो, इम काल द्रव्य ने पिछांण जी।। ३८. इण विध गयो काल नीकल्यो, इम हीज आगमीयो काल जी। वरतमान समो पूछै तिण समें, एक समो छै अधाकाल जी।। ३६. ते समो वरते छै अढी दीप में, तिरछो एती दूर जांण जी। ऊंचो वरते जोतष चक्र लगे, नवसों जोजन परमांण जी।। ४०. नीचो वरते सहज जोजन लगै, माविदेह री दो विजय रे मांय जी। त्यांमे वरते अनंता द्रव्यां ऊपरे, तिणसूं अनंती कही छै परजाय जी।। ४१. एक एक द्रव्य रे ऊपरे, एक एक समो गिण्यो ताय जी। तिण सुं एक समा ने अनंता कह्या, काल तणी परजाय रे न्याय जी।। ४२. वले कहि कहि नें कितरो कहूं, वरतमांन समो सदा एक जी। तिण एकण ने अनंता कह्या, तिणनें ओलखो आण ववेक जी।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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