SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अजीव पदार्थ जघन्य काल: समय ३५. तीर्थंकरों ने इसी चाल से काल का माप बांधा है, और जघन्य काल एक 'समय' रूप स्थापित किया है। 'समय' कार्य और काल द्रव्य की जघन्य स्थिति है। उससे अधिक काल की स्थिति के अनेक भेद हैं। ३६. असंख्यात समय की आवलिका फिर मुहूर्त, पहर, दिन, रात, पक्ष, मास, ऋतु, अयन और दो अयनों का वर्ष स्थापित किया है। काल के भेद (गा० ३६-३८) ३७. इस तरह कहते-कहते पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पणी अवसर्पणी, यावत् पुद्गल-परावर्त स्थापित किए हैं। इस तरह काल द्रव्य को पहिचानो। ३८. इस तरह अतीत काल व्यतीत हुआ है। आगामी काल भी इसी तरह व्यतीत होगा। वर्तमान समय में, जब कि पूछा जा रहा हो, एक समय अद्धाकाल है । काल के भेद : तीनों काल में एक से काल-क्षेत्र (गा० ३६-४०) ३६. यह समय तिरछा ढाई द्वीप में वर्तन करता है। ऊँचा ज्योतिष चक्र तक नौ सौ योजन प्रमाण वर्तन करता है। ४० नीचे सहस्र योजन तक महा विदेह की दो विजय में वर्तन काल पर्यायः अनन्त करता है। इन सब में काल अनन्त द्रव्यों पर वर्तन (गा० ४०–४२) करता है इससे काल की अनन्त पर्याय कही गयी है। ४१. एक ही समय को अनन्त द्रव्यों पर गिनने से काल की अनन्त पर्याय कही गयी है। काल की पर्याय की दृष्टि से एक समय को अनन्त समय कहा है। ४२. कह कर मैं कितना बतला सकता हूँ। वर्तमान समय सदा एक है। इस एक को ही अनन्त कहा है, यह विवेक पूर्वक समझो।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy