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________________ अजीव पदार्थ ६. आकाश द्रव्य आकाशास्तिकाय है। यह भी सत् (अस्तित्व वाली) वस्तु है और इसके अनन्त प्रदेश हैं इसलिये जिन भगवान ने आकाश द्रव्य को अस्तिकाय कहा है। ७. धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय लोक-प्रमाण पहुली हैं। धर्म, अधर्म, आकाश का क्षेत्र-प्रमाण आकाशास्तिकाय लोकालोक प्रमाण लम्बी और पहुली है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय इन तीनों शाश्वत द्रव्य तीनों ही को भगवान ने शाश्वत कहा है। इनका अस्तित्व तीनों काल में रहता है। ये तीनों द्रव्य अलग-अलग हैं। तीनों के गुण और पर्याय तीनों के गुण पर्याय भिन्न-भिन्न हैं। इनके गुण और पर्याय परस्पर में अपरिवर्तनशील अपरिवर्तनशील हैं (एक के गुण पर्याय दूसरे के नहीं होते) ये तीनों काल में शाश्वत रहते हैं। ये तीनों ही द्रव्य फैले हुए हैं, ये हलन-चलन नहीं तीनों निष्क्रिय द्रव्य करते-निष्क्रिय हैं। केवल पुद्गल और जीव ही सक्रिय (हलन-चलन क्रिया करने वाले) हैं। ये समस्त लोक में हलन-चलन क्रिया करते हैं। १०. ११. जीव और पुद्गल जो चलन क्रिया करते हैं, उसमें धर्मास्तिकाय का सहारा रहता है। गमन करते हुए अनन्त जीव और पुद्गलों को सहारा देने से धर्मास्तिकाय की अनन्त पर्यायें कही गयी हैं। धर्मास्तिकाय का लक्षण और उसकी पर्याय-संख्या १२. स्थिर होते हुए जीव और पुद्गल को अधर्मास्तिकाय सहायक होती है। स्थिर होते हुए अनन्त जीव और पुद्गलों को सहायक होने से अधर्मास्तिकाय की अनन्त पर्यायें कही गई हैं। अधर्मास्तिकाय का लक्षण और उसकी पर्याय-संख्या
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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