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नव पदार्थ
६. आकास द्रव्य आकाशास्तीकाय छै, आ पिण छती वसत छै ताय जी।
अनंत प्रदेस छै तेहनां, तिणसं काय कही जिण राय जी।।
७. धर्मास्ती अधर्मास्ती काय तो, पेंहली छै लोक प्रमाण जी।
लोक अलोक प्रमाण आकास्ती, लांबी ने पेंहली जांण जी।।
८. धर्मास्ती ने अधर्मास्ती, वले तीजी आकास्तीकाय जी।
ओ तीनूं कहीं जिण सासती, तीनूंइ काल रे मांय जी ।।
६. ओ तीनूंई द्रव्य छै जू जूआ, जूआ जूआ गुण परजाय जी।
त्यांरी गुण पर परज्याय पलटे नहीं, सासता तीन काल रे मांय जी।।
१०. ए तीनूंई द्रव्य फेली रह्या, ते तो हाले चाले नहीं ताय जी।
हाले चाहे ते पुद्गल जीव छै, ते फिरे छै लोक रे मांय जी।।
११. जीव ने पुद्गल चाले तेहनें, साज धर्मास्तीकाय जी।
अनंता चाले त्यांने साज चैं, तिण सं अनंती कही परजाय जी।।
१२. जीव ने पुद्गल थिर रहे, त्यांने साज अधर्मास्तीकाय जी।
अनंता थिर रहे त्यांने साज छै, तिण सूं अनंती कही परजाय जी।।