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________________ बंध पदार्थ : टिप्पणी ११ ७२३ कर्म अबाधा काल निषेक काल ४. मोहनीय ७००० वर्ष ७० कोटाकोटि सागर कम ७००० वर्ष ५. आयुष्य त्रिभाग पूर्वकोटि त्रिभाग उपरान्त तेतीस सागरोपम कम पूर्व कोटि विभाग ६. नाम २००० वर्ष २० सागरोपम कम २००० वर्ष ७. गोत्र ८. अंतराय ३००० वर्ष ३० कोटाकोटि सागर कम ३००० वर्ष आठों कर्मों की उत्तर प्रकृत्तियों के अबाधा और निषेक काल का वर्णन प्रज्ञापना सूत्र में उल्लिखित है। ११. अनुभाव बंध और कर्म-फल (गाथा १९-२१) : उपर्युक्त गाथाओं में अनुभाग-बन्ध और कर्म-फल पर विशेष प्रकाश डाला गया है। जीव के साथ कर्मों का तादात्म्यसम्बन्ध ही बन्ध है। मिथ्यात्व आदि हेतुओं से कर्मयोग्य पुद्गल-वर्गणाओं के साथ आत्मा का दूध और जल की तरह अथवा लोहपिण्ड और अग्नि की तरह-अन्योन्यानुगमरूप अभेदात्मक सम्बन्ध होता है, वही बन्ध है। आठ कर्मों के पुद्गल-प्रदेश अनन्त होते हैं। इन प्रदेशों की संख्या संसार के अभव्य जीवों से अनन्त गुणी और अनन्त सिद्धों के अनन्तवें भाग जितनी होती है। बन्ध के समय अध्यवसाय की तीव्रता या मंदता के अनुसार कर्मों में तीव्र या मंद फल देने की शक्ति उत्पन्न होती है। विविध प्रकार की फल देने की शक्ति का नाम अनुभाव है। ये बांधे हुए कर्म अवश्य उदय में आते हैं। वे उदय में आए बिना नहीं रह सकते और न फल भोगे बिना उनसे छुटकारा हो सकता है। उदय में आकर फल दे चुकने पर कर्म अकर्म हो अपने आप आत्म-प्रदेशों से दूर हो जाते हैं। जब तक फल देने का काल नहीं आता है तब तक बंधे हुए कर्मों से सुख-दुःख कुछ भी अनुभव नहीं होता। कर्मों १. प्रज्ञापना २३.२, २१-२६ २. नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : वृत्यादिसमेत नवतत्त्वप्रकरणम् : गाथा ७१ की प्राकृत अवचूर्णि : मिथ्यात्वादिभिर्हेतुभिः कर्मयोग्यवर्गणापुद्गलैरात्मनः क्षीरनीरवद्वन्हयपिण्डवद्वान्योन्यानुगमाभेदात्मकः सम्बन्धो बन्धः । ३. उत्त० ३३.१७ (पृ० १५७ टि० ४ में उद्धृत)
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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