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________________ ७२२ नव पदार्थ की कही गई है। कई ग्रन्थों में इस कर्म की जघन्य स्थिति बारह अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। भगवती सूत्र में आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि त्रिभाग उपरान्त ३३ सागरोपम वर्ष की कही गयी है। बन्ध-काल से लेकर फल देकर दूर हो जाने तक के समय को कर्मों की स्थिति कहते हैं। कम-से-कम स्थिति जघन्य और अधिक-से-अधिक स्थिति उत्कृष्ट कहलाती है। बन्धने के बाद कर्म का विपाक होता है और फिर वह उदय में आकर फल देता है। विपाककाल में कर्म फल नहीं देता केवल सत्तारूप में आत्म-प्रदेशों में पड़ा रहता है। उस काल के बाद कर्म उदय में आता है और फलानुभव कराने लगता है। फलानुभव के काल को कर्म-निषेक काल कहते हैं । यहाँ कर्मों की जो स्थितियाँ बतलायी गई हैं वह दोनों काल को मिला कर कही गई है। अबाधाकाल को जानने का तरीका यह है कि जिस कर्म की स्थिति जितने सागरोपम की होती है, उतने सौ वर्ष अबाधाकाल होता है। उदाहरणस्वरूप ज्ञानावरणीय कर्म की स्थिति ३० कोटाकोटि सागरोपम है। उसका अबाधाकाल ३००० वर्ष का कहा है। इतने वर्षों तक वह सत्तारूप में रहता है, फल नहीं देता। यह विपाककाल है। भगवती सूत्र में अबाधा और निषेक काल का वर्णन इस प्रकार मिलता है : कर्म अबाधा काल निषेक काल १. ज्ञानावरणीय ३००० वर्ष ३० कोटाकोटि सागर कम ३००० वर्ष २ दर्शनावरणीय ." ३. वेदनीय १. भगवती ६.३ वेदणिज्जं जह० दो समया २. (क) तत्त्वा० ८.१६ : अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य-वेदनीयप्रकृतेरपरा द्वादशमूहूर्ता स्थितिरिति (भाष्य) (ख) नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : देवानन्दसूरिकृत सप्ततत्त्वप्रकरणम : जहन्न ठिई वेअणीअस्स बारस मुहुत्ता ३. भगवती ६.३ : आउगं .'' उक्को० तेत्तीसं सागरोवमाणि पुव्वकोडितिनागममहियाणि'
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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