________________
निर्जरा पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी १७
६८५
पांच परकार नी सझाय कीयां सूं, निरजरा हुइ कटीया करमों रे । सझाय करें ते निरवद जोगां सूं, जब नीपनों निरजरा धर्मो रे।। ए पिण उत्तराधेन गुणतीसमें धेनें, उगणीस सूं तेबीस तांई रे ।। त्यां सुभ जोगां ने संवर सरधे, ते भूल गया भर्म मांही रे । जोग तणां पचखांण कीयां सूं, अजोग संवर हुवो रे ।। ते अजोग संवर चारित नाही, अजोग संवर चारित तूं जूवो रे ।। अजोग संवर सुभ जोग रूंध्यां नीपनों, जब छूटो निरवद व्यापारो रे । चारित नीपनों सर्व इवरित त्याग्यां, बाकी इवरित न रही लिगारो रे ।। अजोग संवर हुवें निरवद जोग त्याग्यां, तिणमें सावध रो नहीं परिहारो रे । चारित हु सर्व इविरत त्याग्यां, नव कोटि त्याग्यों सावध व्यापारो रे।। तीन करण जोगां सर्व सावद्य त्याग्यों, ते तों तीन गुपत संवर धर्मो रे। पांच सुमति छ निरवद जोग व्यापार, त्यांसू कटें छे आगला करमों रे ।। गुपत संवर तो निरंतर साधु रे, पांच सुमत निरंतर नाही रे । पांच सुमत तो निरंतर नहीं छे, ए तो प्रवरते छं जठा तांई रे।। इर्या सुमत तो चाले जठां ताइ, भाषा सुमत बोलें जठा तांइ रे । एसणा सुमत तों प्रवरतें छे त्यां लग, त्यांने संवर कहीजें नाहीं रे ।। आयाणभंडमतनिखेवणा सुमत, ते तों लेवें मूंके तठा ताई रे। परठणा सुमति परेठं जठा तांइ, त्यांने पिण संवर कहीजें नाहीं रे।। सुमति छै सुभ जोग निरजरा री करणी, सुभ जोगां ने संवर कहें कोयो रे। याने एक कहें तिणरी उंधी सरधा, संवर ने सुभ जोग छे दोयो. रे। सुभ जोग रुंध्यां मिटें निरजरा री करणी, पुन ग्रहवारा दुवार रूंधांणा रे। जब अजोग संवर नीपनों तिण कालें, करण वीर्य जोग मिटांणो रे।। जीव तणा प्रदेश चलावें, तेहीज जोग व्यापारो रे। ते प्रदेश थिर हुवां अजोग संवर छ, सुभ जोग मिट्या तिणवारो रे ।। सुभ जोग व्यापार सूं करम कटे छ, जब जीव रा प्रदेस चाले रे । जीव रा प्रदेस चालें तठा तांई, पुन रा प्रदेश झालें रे।। । चारित ना परिणाम थिर प्रदेस, त्यांरो सीतलभूत सभावो रे। तिण सूं सुभ जोग ने चारित न्यारा न्यारा छ, ओ तो देखों उघाडो न्यावो रे।।