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________________ ६५६ नव पदार्थ वीयावच करण रो फल बतायो, बंधे तीर्थंकर नाम करमो रे । ते वीयावच करें सुभ जोगां सूं, त्यांतूं हुवों निरजरा धर्मो रे ।। वंदणा करता नीच गोत खपावें वले बांधे उंच गोत करमों रे । वंदणा करें , सुभ जोगां सूं, तिण सूं हुवों निरजरा धर्मो रे ।। निरजरा री करणी करंता पुन हुवें छ, तिण करणी माहे नहीं खामी रे। निरवद जोगां सूं निरजरा ने पुन हुवें छे, ते पुन तणा नहीं कांमी रे!। सुभ जोगां सूं निरजरा हुवें छे, तिण सुं निरजरा री करणी में चाल्या रे। वले सुभ जोगां तूं पुन पिण लागें, तिण सूं आश्रव मांहे घाल्या रे || स्वामीजी ने इसी विषय पर दूसरी तरह इस प्रकार प्रकाश डाला है : चारित संवर में सुभ जोग सरधे, इण सरधा सूं होसी घणा खराब । सुभ जोग ने संवर जिण कह्या न्यारा, त्यांरों सुणजों विवरा सुध जाब । तेरमें गुणठांणे आतमा सात, तिहां कषाय आतमा टल गइ ताय। चवदमें गुणठाणे छ आतमा छ, तिहां जोग आतमा गइ छे विललाय।। जोग आतमा मिटी चवदमें गुणठांणे, चारित आतमा तो मिटी नहीं कोय। इण लेखें चारित ने सुभ जोग, प्रतख जूआ जूआ छे दोय ।। चारित ने जोग एक सरधे तो, आठ आतमा री हुवें आतमा सात । सुभ जोग ने चारित एक सरधे तिण, चोडेई पडवजीयो मिथ्यात ।। बारेमें तेरमें चवदमें गुणठाणे, पायक चारित छ जथाख्यात। ते चारित निरंतर एक धारा छ, ते तो बढ़े घटे नहीं छै तिलमात ।। चारित मोहणी षय हुवें जब, षायक चारित नीपजें ताय । इण चारित संवर रों एक सभाव, सुभ जोग ते चारित कदेय न थाय ।। चारित मोहणी उपसम हुवें जब, उपसम चारित नीपजें ताय। षयउपसम हूआं षयउपसम चारित, खय हूआं षायक चारित थाय।। चारित मोहणी षय षयउपसम हूआं, तिण सूं तो सुभ जोग नीपजें नांहीं। मोह घट्यां सुभ जोग नींपना सरधे, ते पड गया मोह मिथ्यात रे माहीं।। अन्तराय करम षय षयउपसम हूआं, नीपजें षायक षयउपसम ताय | ते लबद वीर्य छे उजलों निरमल, तिण वीर्य सूं करम न लागें आय।। तिण लबध वीर्य सूं करम न रुकें, वले वीर्य सूं करम कटें नहीं ताय। लबद वीर्य छे पुदगल ने संजोगें, तिण ने वीर्य आतमा कही जिणराय।। १. भिक्षु-ग्रन्थ रत्नाकर (ख० १) : टीकम डोसी री चौपई ढा० ३ गा० १-२०, २६, ३५
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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