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________________ नव पदार्थ (१०) यह लोक-द्रव्य है : "लोक दबे, “खेत्तओ लोकपमाणमेत्ते'।" क्षेत्र की दृष्टि से जीव लोक परिमित है। लोक के बाहर द्रव्य नहीं होता। “जहाँ तक लोक है वहाँ तक जीव हैं। जहाँ तक जीव हैं वहाँ तक लोक हैं। ११. द्रव्य के लक्षण, गुणादि. भाव जीव हैं (गाथा ४३-४४) । गाथा २५ में कहा गया है-"भाव ते लखण गुण परज्याय, ते तो भावे जीव छै ताय।" यहाँ इस बात को पुनः दुहराया गया है। इसका भाव टिप्पणी ८ (पृ० ३६-३७) में स्पष्ट किया जा चुका है। यहाँ लक्षण, गुण और पर्याय को भाव जीव कहने के साथ-साथ औदयिक आदि पाँच भावों को भी भाव जीव कहा है। जीव के भाव, लक्षण, गुण और पर्याय अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी हो सकते हैं। अच्छे हों, या बुरे, सब भाव जीव हैं। पांच भावों में से क्षायिक भाव को छोड़कर अवशेष चार भाव स्थिर नहीं रहते। कर्मों के क्षय से निष्पन्न कितने ही क्षायक भाव स्थिर होते हैं। १२. जीव शाश्वत अशाश्वत कैसे ? (गाथा ४५-४७) एक बार गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से पूछा-"जीव शाश्वत है या अशाश्वत ।" भगवान ने उत्तर दिया-“गौतम ! जीव शाश्वत भी है और अशाश्वत भी।" गौतम ने पूछा-“भगवान् ! आप ऐसा किस हेतु से कहते हैं ? भगवान् ने उत्तर दिया-“गौतम ! जीव द्रव्य की अपेक्षा शाश्वत है और भाव अपेक्षा अशाश्वत । इस हेतु से कहता हूँ कि जीव शाश्वत भी है और अशाश्वत भी।" स्वामीजी ने इन गाथाओं में आगम की इसी बात को रखा है। जीव के जितने भी भाव-पर्याय हैं वे उत्पन्न होकर विलीन हो जाते हैं। इससे अशाश्वत हैं। जीव द्रव्य स्वयं कभी विलय को प्राप्त नहीं होता इसलिये वह शाश्वत है। “वह था, है और आगे भी रहेगा इसलिए शाश्वत है। जीव नैरयिक होकर तिर्यञ्च योनि में उत्पन्न होता है, तिर्यञ्च योनि से निकल मनुष्य होता है आदि इसलिए अशाश्वत है। १. ठा० ५.३ ५३० २. ठा० १०.६३१ : जाव ताव लोगे ताव ताव जीवा जाव ताव जीवा ताव ताव लोए ३. भग० ७.२.२७३ : गोयमा ! दवट्ठयाए सासया भावट्ठयाए असासया से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जीवा सिय सासया सिय असासया। ४. भग० ६.३४.३८७ सासए जीवे जमाली। जं न कयाइ णासि जाव णिच्चे, असासए जीवे जमाली ! जं णं नेरइए भवित्ता तिरिक्खजोणिये भवइ तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणुस्से भवइ मणुस्से भविता देवे भवइ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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