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________________ દદ૦ नव पदार्थ होना, (२) आसनाभिग्रह-जहाँ-जहाँ बैठने की इच्छा करे वहाँ-वहाँ आसन ले जाना', (३) आसनप्रदान-आसन देना, (४) सत्कार-स्तवन वन्दनादि करना, (५) सम्मान करना (६) कृतिकर्म-वंदना करना, (७) अञ्जलिकरणग्रह-दोनों हाथ जोड़ना, (८) अनुगच्छतासम्मुख जाना, (६) पर्युपासना-बैठे हुए की सेवा करना और (१०) प्रतिसंसाधनता-जाने पर पीछे जाना। अनाशातना विनय ४५ प्रकार का कहा है : (१) अरिहंतों की अनाशातना, (२) अरिहंत प्ररूपित धर्म की अनाशातना, (३) आचार्यों की अनाशातना, (४) उपाध्यायों की अनाशातना, (५) स्थविरों की अनाशातना, (६) कुल की अनाशातना, (७) गण की अनाशातना, (८) संघ की अनाशातना, (६) क्रियावादियों की अनाशातना, (१०) संभोगी (एक समाचारी वालों) की अनाशातना, (११) आभिनिबोधिक ज्ञान की अनाशातना, १. यह अर्थ अभयदेव (औपपातिक टीका) के अनुसार है। ठाणाङ्ग टीका में उन्होंने इसका अर्थ भिन्न ही किया है-"आसनाभिग्रहः पुनस्तिष्ट आदरेण आसनानयनपूर्वकमुपविशतात्रेति भणं"-इसका अर्थ है-बैठने के बाद आदरपूर्वक आसन लाकर 'यहाँ बैठ' इस प्रकार निमंत्रित करना। २. ठाणाङ्ग टीका में उद्धत गाथा में 'आसणअनुप्रदान' नाम मिलता है-जिसका अर्थ अभयदेव ने किया है-आसनस्य स्थानात्स्थानान्तरसञ्चारणं । यही अर्थ उन्होंने औपपातिक की टीका में 'आसनाभिग्रह' का किया है। ३. शुश्रूषा विनय और अनाशातना दिनय में अन्तर यह है कि शुश्रूषा विनय उचित क्रिया-करण रूप है और अनाशातना विनय अनुचित क्रिया-निवृत्त रूप। ४. मिलावें तित्थगर धम्म अयरिआ वायगे थेर कुलगणे संघे। संभाइय किरियाए मइणाणाईण य तहेव ।। कायव्वा पुण भत्ती बहुमाणो तह य वण्णवाओ अ। अरिहंतमाइयाणं केवलणाणावसाणाणं ।। (दश०, १.१ की हारिभद्रीय टीका में उद्धृत) ५. जो गच्छ की संस्थिति करे वह स्थविर अथवा जो दीक्षावय या श्रुतपर्याय में बड़ा हो। ६. साधुओं के गच्छ-समुदाय को 'कुल' कहते हैं। ७. साधुओं के कुल समुदाय को 'गण' कहते हैं। ८. गण के समुदाय को 'संघ' कहते हैं। ६. जीव है, अजीव है आदि में श्रद्धा रखता है, उसे क्रियावादी कहते हैं। ज 9
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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