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________________ निर्जरा पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी १२ ૬૬ १२. विनय (गा० : २३-३७) : विनय तप सात प्रकार का कहा है : १. ज्ञान विनय, २. दर्शन विनय, ३. चारित्र विनय, ४. मन विनय, ५. वचन विनय, ६. काय विनय और ७, लोकोपचार विनय'। इनमें प्रत्येक का स्वरूप संक्षेप में नीचे दिया जाता है : १. ज्ञान विनय पाँच प्रकार का कहा है-(१) आभिनिबोधिक ज्ञानविनय, (२) श्रुतज्ञान विनय, (३) अवधिज्ञान विनय, (४) मनःपर्यवज्ञान विनय और (५) केवलज्ञान विनय। २. दर्शन विनय दो प्रकार का कहा गया है : (१) शुश्रूषाविनय और (२) अनाशातना विनय। . (१) शुश्रूषा विनय अनेक प्रकार का कहा गया है : अभ्युत्थान-आसन से खड़ा (क) औपपातिक सम० ३० (ख) भगवती २५.७ (ग) णाणे दंसणचरणे मणवइकाओवयारिओ विणओ। णाणे पंचपगारो मइणाणाईण सद्दहणं ।। भत्ती तह बहुमाणो ताद्दिद्वत्थाण सम्मभावणया। विहिगहणमासोवि अ एसो विणओ जिणाभिहिओ।। (दश० १.१ की हारिन्द्रीय टीका में उद्धृत) ज्ञान के विधिपूर्वक ज्ञान-ग्रहण और उसके अभ्यास को ज्ञान विनय कहते हैं। ज्ञानी साधु के प्रति विनय को भी ज्ञान विनय कहते हैं। २. पादटिप्पणी १ (ग) ३. सम्यक्त्व का विनय । दर्शन से दर्शनी अभिन्न होने से गुणाधिक सकल चारित्री में श्रद्धा करना-उसकी सेवा और अनाशातना को दर्शन विनय कहते हैं। ४. मिलावें उत्तराध्ययन ३.३२ की निम्नलिखित गाथा : अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं तहेवासणदायणं गुरुभक्तिभावसुस्सूसा विणओ एस वियाहिओ।। तथा निम्नलिखित गाथाएँ सुस्सूसणा अणासायणा य विणओ अ दसंणे दुविहो । दंसणगुणाहिएसुं कज्जइ सुस्सूसणाविणओ।। सक्कारब्भुट्ठाण सम्माणासण अभिग्गहो तह य। आसणअणप्पयाणं किइकम्मं अंजलिगहो अ।। एंतस्सणुगच्छणया ठिअस्स तह पज्जुवासणा भणिया। गच्छंताणुव्वयणं एसो सुस्सूसणाविणओ।। (दसवैकालिक १.१ की हारिभद्रीय टीका में उद्धत)
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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