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________________ ४२ नव पदार्थ है। वस्तु से संलग्न अपृथक्य सूक्ष्मतम अंश को प्रदेश कहते हैं। परमाणु पुद्गल से अलग हो सकते हैं पर प्रदेश जीव से कभी अलग नहीं हो सकते। एक परमाणु जितने स्थान को रोकता है उसे प्रदेश कहते हैं। इस माप से जीव के असंख्यात प्रदेश है। पुद्गल अवयव रूप तथा अवयव-प्रचय रूप होता है जबकि जीव एक प्रदेश रूप अथवा एक अवयव रूप नहीं हो सकता। वह हमेशा प्रदेशप्रचय रूप में एक प्रदेशों के अखंड समूह के रूप में रहता है। (देखिए टिप्पणी ६ पृ० २८ पेरा ४ तथा टि०७ पृ० २६ अन्तिम पेरा) (६) वह अच्वेद्य, अभेद्य, आदि तथा अखंड द्रव्य है। अस्तिकाय होने से जीव सहज ही इन गुणों से विभूषित होता है। स्वामीजी ने जो यहाँ वर्णन किया है उसका गीता के निम्न श्लोकों से बड़ा साम्य है। नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यानो न शोषयति मारुतः । अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ।। २.२३.२४ न इस जीवत्मा को शस्त्र काट सकते हैं, न आग जला सकती है, न पानी गला सकता है और न हवा सुखा सकती है। यह जीवात्मा काटा नहीं जा सकता, जलाया नहीं जा सकता, गलाया नहीं जा सकता, सुखाया नहीं जा सकता। यह नित्य है सर्वगत है, स्थिर रहनेवाला है, अचल और सनातन है। आगम में आत्मा की इस विशेषता का वर्णन इन दोनों शब्दों में मिलता है-“से न छिज्जइ न भिज्जइ न डज्झइ न हम्मइ कंचणं सव्व लोए।" १. आचाराङ्ग १.३.३ भगवती (८.३.३२४) का निम्न पाठ भी इसी बात का समर्थन करता है : "अह भंते ! कुम्भे कुम्मावलिया गोहे गोहावलिया गोणे गोणावलिया मणुस्से मणुस्सावलिया महिसे महिसावलिया एएसि णं दुहा वा तिहा वा संखेज्जहा वा छिन्नाणं जे अंतरा ते वि णं तेहिं जीवपएसेहिं फुडा ? हंता ! फुडा। पुरिसे णं भंते ! (जं अंतर) ते अंतरे हत्थेण वा पाएण वा अंगुलया वा सलागाए वा अन्नयरेण वा तिक्खेणं सत्थजाएणं अच्छिंदमाणेवा विच्छिंदमाणे वा अगणिकाएणं वा समोडहमाणे तेसिं जीवपएसाणं किंचि आवाहं वा विवाहं वा उप्पायइ छविच्छेदं व करेइ ? णो तिणढे, नो खलु तत्थ सत्थं संकमइ।"
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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