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________________ जीव पदार्थ : टिप्पणी १० (३) जीव द्रव्य शाश्वत है । ठाणांग (५.३.५३०) में कहा है 'कालआ ण कयाइ णासी ने कयाइ न भवइ च कयाइ न भविस्सइत्ति भुवि भवइ य भविस्सइ य धुवे णितिए सासए अक्खए अब्बए अवट्ठिए णिच्चे।" जीव पहले भी था, अब भी है और आगे भी रहेगा। वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्वय, स्थित और नित्य है। वह तीनों कालों में जीव रूप में विद्यमान रहता है। जीव कभी अजीव नहीं होता। यही उसकी शाश्वतता है। गीता में कहा है-"अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे (२.२०)"-यह जीवात्मा अज है, नित्य है, शाश्वत है, पुरातन है, शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। गीता का निम्न श्लोक भी यही बात कहता है : न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः । न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम् ।। २.१२ गौतम ने पूछा-"लोक में शाश्वत क्या है ? भगवान महावीर ने उत्तर दिया-"जीव और अजीव ।" (४) जीव उत्पाद-व्यय संयुक्त है। जीव शाश्वत ध्रुव पदार्थ होने पर भी उसमें एक के बाद एक अवस्था होती रहती है। इन क्रमिक अवस्थाओं को पारिभाषिक शब्दावली में पर्याय कहते हैं। पहली स्थिति का नाश होता है, दूसरी का जन्म होता है और इन परिवर्तित स्थितियों में चैतन्य असंख्यात प्रदेशी द्रव्य जीव वैसा का वैसा रहता है। (देखिए टि० ८ पृ० ३६) (५) जीव द्रव्य अस्तिकाय है । अस्ति प्रदेश; काय= समूह । असंख्य अथवा अनन्त प्रदेशों का जो समूह होता है उसे अस्तिकाय कहते हैं । जीव असंख्यात प्रदेशों का समूह १. भगवती २.१०.११७ में भी ऐसा ही पाठ मिलता है। २. भगवती १.४.४१ ३. ठा० १०.१.६३१ : ण एवं भूयं वा भव् वा भविस्सइ वा जं जीवा अजीवा भविस्संति अजीवा वा जीवा भविस्संति ४. ठा० २.४.१५१ के सासया लोए ? जीवच्चेव-अजीवच्चेव। ५. (क) भग० २.१०.११७ : कति णं भंते ! अत्थिकाया पं० ? गोयमा पंच अस्थिकाया पं०, ___ तंजहा ....... जीवत्थिकाए (ख) ठा० ४.१.३१४ चत्तारि अस्थिकाया अरूविकाया पं० तं० ....... जीवस्थिकाए
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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