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________________ जीव पदार्थ : टिप्पणी ६ करता है; (६) नाम-जो प्राणी की गति, परिस्थिति आदि का निर्यामक होता है; (७) गोत्र-जो मनुष्य के ऊँच-नीच कुल को निर्धारित करता है और (८) अन्तराय-जो दान, लाभ, भोग-उपभोग व पराक्रम इन चार बातों में रुकावट डालता है। उदय आठ ही कर्मों का होता है। कर्मों के उदय से जीव को चार गति, छ: काय, छ: लेश्या, चार कषाय, तीन वेद, मिथ्यात्वी, अकेवली, अविरति, असंज्ञी, अज्ञानी, आहारता, संयोगी, छद्मस्थता, संसारता आंसिद्ध-ये भाव उत्पन्न होते हैं। उपशम केवल मोहनीय कर्म का ही होता है। इससे उपशम सम्यक्त्व और उपशम चारित्र प्राप्त होते हैं। क्षय आठ कर्मों का होता है। कर्मों के क्षय से जीव को केवल ज्ञान, केवल दर्शन, आत्मिक सुख, क्षायक सम्यक्त्व, क्षायक चारित्र, अटल अवगाहना, अमूर्तित्व, अगुरूलघुता, दान लब्धि, लाभ लब्धि, भोग लब्धि, उपभोग लब्धि, घीर्य लब्धि की प्राप्ति होती है। क्षयोपशम चार कर्मों का होता है-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय। इन कर्मों के क्षयोपशम से जीव में क्रमशः निम्नलिखित बातें उत्पन्न होती हैं : केवल ज्ञान को छोड़कर चार ज्ञान, तीन अज्ञान और स्वाध्याय। पाँच इन्द्रिय और केवल दर्शन को छोड़कर तीन दर्शन। चार चारित्र, देश व्रत और तीन दृष्टि । पाँच लब्धि और तीन वीर्य। सर्व कर्म पारिणामिक हैं। कर्मों के परिणमन से जीव में अनेक परिणाम होते हैं। वह गति परिणामी, इन्द्रिय परिणामी, कषाय परिणामी, लेश्या परिणामी, योग परिणामी, उपयोग परिणामी, ज्ञान परिणामी, दर्शन परिणामी चरित्र परिणामी तथा वेद परिणामी होता है। ___स्वामीजी कहते हैं कि जड़ कर्मों के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम और परिणमन से जीव में जो भाव निष्पन्न होते हैं वे सब भाव जीव है। जीवों के पाँचों-औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव भी भाव जीव है। इन भावों की उत्पत्ति कर्मों के संयोग-वियोग से होती है-यह स्पष्ट ही है। कर्मों के क्षय से उत्पन्न क्षायिक भाव स्थिर होते हैं। उत्पन्न होने के बाद वे नष्ट नहीं होते। अन्य भाव अस्थिर होते हैं। उत्पन्न होकर मिट जाते हैं। १. पाँचों भाव विषयक इस निरूपण के लिए देखिए 'अनुयोग द्वार' सूत्र० १२६ तथा तेरा द्वार द्वा०८
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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