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________________ निर्जरा पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी १ ६११ स्वामीजी ने कर्मभोगजन्य निर्जरा को 'अकाम निर्जरा' नहीं कहा है। कारण इस निर्जरा में उन हेतुओं-क्रियाओं-साधनों के प्रयोग का सर्वथा अभाव है जिनसे निर्जरा होती है। यह निर्जरा तो कर्मों के स्वाभाविक तौर पर फल देकर दूर होने से स्वतः उत्पन्न होती है। अकाम निर्जरा तब होती है जब क्रिया-साधन तो रहते हैं पर उनका प्रयोग कर्म-क्षय की अभिलाषा से नहीं होता। कर्मभोग-जन्य निर्जरा में साधनों का ही अभाव है। __दूसरे प्रकार की निर्जरा, जो शुद्ध करनी द्वारा उत्पन्न होती है, उसे स्वामीजी ने अनुपम निर्जरा कहा है। इस अनुपम निर्जरा से ही जीव मुक्ति को समीप लाता है। अपनी क्रिया की उत्कृष्टता के अनुसार उसकी आत्मा न्यूनाधिक उज्ज्वल होती जाती है। यह निर्जरा इच्छाकृत होती है। जब कर्म-क्षय की अभिलाषा से शुद्ध क्रिया की जाती है तभी यह निर्जरा उत्पन्न होती है अतः यह सहज नहीं, प्रयोगजा है। आगमों में 'अकाम निर्जरा' शब्द मिलता है। ‘सकाम निर्जरा' शब्द नहीं मिलता। 'सकाम निर्जरा' शब्द आगमों में उपलब्ध न होने पर भी अकाम निर्जरा' के प्रतिपक्षी तत्त्व के रूप में वह अपने आप फलित होता है। पहली निर्जरा सहज है क्योंकि वह बिना अभिलाषा-बिना उपाय–बिना चेष्टा होती है। दूसरी निर्जरा सकाम निर्जरा है क्योंकि वह प्रयत्नमूला है। वह कर्म-क्षय की अभिलाषा से उत्पन्न उपाय-चेष्टा, प्रयत्न से होती है। कहा है-“कर्मणां फलवत् पाको यदुपायात् स्वतोऽपि च"-फल की तरह कार्मों का पाक भी दो तरह से होता है-उपाय से और स्वतः । सकाम निर्जरा उपायकृत होती है और अकाम निर्जरा सहज रूप से स्वतः होनेवाली । अकाम निर्जरा सबके होती है और सकाम निर्जरा बारह प्रकार के तपों को करनेवाले निजराभिलाषी व्यक्तियों के। पहली प्रकार की निर्जरा किसके होती है, इस विषय में कोई मतभेद नहीं है। वह सर्वमत से 'सव्वजीवाणं'-सर्व जीवों के होती है। दूसरी प्रकार की निर्जरा के विषय में मतभेद है। श्री हेमचन्द्रसूरि कहते हैं-“सकाम निर्जरा यमियों-संयमियों के ही होती है और अन्य दूसरे प्राणियों के नहीं।" १. नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : हेमचन्द्रसूरिप्रणीत सप्ततत्त्वप्रकरण गा० १२८ : ज्ञेया सकामा यमिनामकामान्यदेहिनाम् ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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