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नव पदार्थ
३०. यांरी आसातना टालणी ने विनों करणों, भगत कर देणो बह संमाण जी।
गुणग्रांम करे ने दीपावणा त्यांने, दरसण विनों में सुध सरधांन जी।।
३१. यां पनरां बोलां में पांच ग्यांन फेर कह्यां छे, ते दीसे छे चारित सहीत जी।
ए पांच ग्यांन ने फेर कह्या त्यांरी, विनां तणी ओर रीत जी।।
३२. सामायक आदि दे पांचूई चारित, त्यांरो विनों करणो जथा जोग जी।
सेवा भगत त्यांरी हरष सूं करणी, त्यांसू करणो निरदोष संभोग जी।।
३३. सावध मन में परो निवारे, ते सावध छे बारे परकार जी।
बारे परकार निरवद मन परवरतावे, तिण सूं निरजरा हुवें श्रीकार जी।।
३४. इम हिज सावध वचन बारे भेदे, तिण सावद्य नें देवे निवार जी।
निरवद वचन बोले निरदोषण, बारेइ बोल वचन विचार जी।।
३५. काया अजेंणा सूं नहीं प्रवरतावे, तिणरा भेद कह्या सात जी।
ज्यूं सात भेद काया जेंणा सूं परवरतावे, जब करम तणी हुवें घात जी।।
३६. लोग ववहार विनों कह्यों सात परकारे, गुर समीपे वरतवो ताम जी।
गुरवादिक रे छांदे चालणो, ग्यांनादिक हेते करणों त्यांरो काम जी।।
३७. भणायो त्यांरो विनों वीयावच करणी, आरत गवेष करणों त्यांरो काम जी।
प्रसताव अवसर नों जांण हुवेणो, सर्व कार्य करणो अभिरांम जी।।