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नव पदार्थ
२२. प्रायछित कह्यों में दस परकारें, दोष आलोए प्रायछित लेवंत जी।
ते करम खपाय आराधक थावे, ते तो मुगत में बेगो जावंत जी।।
२३. विनों तप कह्यों सात परकारें, त्यांरो छे बोहत विसतार जी। __ग्यांन दसरण चारित मन विनों, वचन काया ने लोग ववहार जी।।
२४. पांचूं ग्यांन तणा गुण ग्रांम करणा, ए ग्यांन विनों करणो में एह जी।
दरसण विनां रा दोय भेद छ, सुसरषा ने अणासातणा तेह जी।।
२५. सुसरषा बडां री करणी, त्यांनें बंदणा करणी सीस नांम जी।
ते सुसरषा दस विध कही छे, त्यांरा जूआजूआ नाम छे तांम जी।।
२६. गुर आयां उठ उभो होवणो, आसन छोडणो ताम जी।
आसन आमंत्रणो हरष सूं देणो, सतकार में समांण देणो आंम जी।।
२७. बंदणा कर हाथ जोडी रहें उभो, आवता देख सांझो जाय जी।
गुर उभा रहें त्यां लग उभा रहिणो, जायें जब पेहचावण जावें ताय जी।।
२८. अणअसातणा विनां रा भेद, पेंतालीस कह्या जिणराय जी।
अरिहंत ने अरिहंत परूप्यो धर्म, वले आचार्य ने उवझाय जी।।
२६. थिवर कुल गण संघ नों विनों, किरीयावादी संभोगी जांण जी।
मति ग्यांनादिक पांचूई ग्यांन रो, ए पनरेंइ बोल पिछांण जी।।