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निर्जरा पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी १२
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से भिन्न तत्त्व नही, पर केवल उसका एक अंश है। देशतः कर्मों का क्षय कर आत्म-प्रदेशों का देशतः उज्जवल होना निर्जरा है और सम्पूर्णरूप से कर्म क्षय कर आत्म-प्रदेशों का सम्पूर्णतः उज्जवल होना मोक्ष।
___"जैसे संवर आस्रव का प्रतिपक्ष है वैसे ही निर्जरा बन्ध का प्रतिपक्ष है। आस्रव का संवर और बन्ध की निर्जरा होती है। निर्जरा से आत्मा का परिमित स्वरूपोदय होता है। पूर्ण संयम और पूर्ण निर्जरा होते ही आत्मा का पूर्णोदय हो जाता है-मोक्ष हो जाता है।"
१.
जैन दर्शन का मौलिक तत्त्व पृ० २८२