SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 603
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५७८ (३) विभंगज्ञान : विभंगज्ञानी विभंगज्ञान के विषयभूत द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को जानता-देखता है'। नव पदार्थ ३. ज्ञानावरणीय कर्म पाँच प्रकार का है - मतिज्ञानावरणीय, श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय, मनःपर्याय ज्ञानावरणीय और केवलज्ञानावरणीय । इनके स्वरूप का विस्तृत विवेचन पहले किया जा चुका है (देखिए पृ० ३०४) । ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से समुच्चयरूप में निम्न आठ बोल उत्पन्न होते हैं । (१) केवलज्ञान को छोड़कर बाकी चार ज्ञान | (२) तीनों अज्ञान (३) आचाराङ्गादि १२ अङ्गों का अध्ययन और उत्कृष्ट में १४ पूर्वों का अभ्यास भिन्न-भिन्न ज्ञानावरणीय कर्मों के क्षयोपशम का परिणाम इस प्रकार होता है : (१) मतिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से सम्यक्त्वी के मतिज्ञान उत्पन्न होता है और मिथ्यात्वी के मतिअज्ञान । (२) श्रुतज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से सम्यक्त्वी के श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है और मिथ्यात्वी के श्रुतअज्ञान । सम्यक्त्वी उत्कृष्ट १४ पूर्व का अभ्यास करता है और मिथ्यात्वी देशन्यून १० पूर्व तक । (३) अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से सम्यक्त्वी के अवधिज्ञान उत्पन्न होता है और मिथ्यात्वी के विभंगज्ञान । (४) मनःपर्यव ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से ऋद्धिप्राप्त अप्रमत्त साधु को मनः पर्यवज्ञान उत्पन्न होता है और मिथ्यात्वी को यह ज्ञान उत्पन्न नहीं होता | (५) केवलज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता । ज्ञानावरणीय कर्म के सम्पूर्ण क्षय से केवलज्ञान उत्पन्न होता है । १. भगवती ८.२ : (क) दव्वओ णं मइअन्नाणी मइअन्नाणपरिगयाइं दव्वाइं जाणइ पासइ, एवं जाव भावओ मइअन्नाणी मइअन्नाणपरिगएं भावे जाणइ पासइ । (ख) दव्वओ णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगयाइं दव्वाइं आघवेति, पन्नवेइ, परुवेइ । (ग) दव्वओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगया इं दव्वाइं जाणइ पासइ एवं जाव भावओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगए भावे जाणइ पासइ ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy