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________________ ५७६ आभिनिबोधिक ज्ञानी आदेश से (सामान्य रूप से) सर्व द्रव्य, सर्व क्षेत्र, सर्व काल और सर्व भाव को जानता देखता है' । नव पदार्थ (२) श्रुतज्ञान : जो सुना जाए वह श्रुतज्ञान है। श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है । परन्तु मति श्रुतपूर्विका नहीं होती । उपयुक्त (उपयोग सहित) श्रुतज्ञानी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा सर्व द्रव्य, सर्व क्षेत्र, सर्व काल और सर्व भाव को जानता देखता है । (३) अवधिज्ञान : द्रव्य से अवधिज्ञानी बिना किसी इन्द्रिय और मन की सहायता से जघन्य अनन्त रूपी को और उत्कृष्ट सभी रूपी द्रव्यों को जानता देखता है। क्षेत्र से जघन्य अंगुल मात्र क्षेत्र को और उत्कृष्ट सभी लोकप्रमाण असंख्य खण्डों को अलोक में जानता-देखता है। काल से जघन्य आवलिका के असंख्य काल भाव को और उत्कृष्ट असंख्य उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी रूप अतीत-अनागत काल को जानता देखता है। भाव से जघन्य और उत्कृष्ट से अनन्त भावों को जानता-देखता है । सर्व भावों के अनन्तवें भाग को जानता देखता है । (४) मनः पर्यवज्ञान : यह ज्ञान बिना किसी मन या इन्द्रिय की सहायता से सभी जीवों के मन में सोचे हुए अर्थ को प्रकट करनेवाला है । ऋजुमति मनःपर्यवज्ञानी द्रव्य से अनन्त प्रदेशी अनन्त स्कन्धों को जानता देखता है। क्षेत्र से जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग और उत्कृष्ट नीचे - इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपरी भाग के नीचे के छोटे प्रतरों तक जानता है, ऊपर ज्योतिष विमान के ऊपरी तलपर्यन्त, तथा तिर्यक्- मनुष्य क्षेत्र के भीतर १. भगवती ८. २ : दव्वओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वदव्वाइं जाणइ पासति, खेत्तओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सव्वखेत्तं जाणइ पासति, एवं कालओ वि, एवं भावओ वि। २. नन्दी : सूत्र २४ : इत्ति सुयं ३. भगवती ८.२ : दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदवाइं जाणति पासति, एवं खेत्तओ वि, कालओ वि । भावाओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वभावे जाणति, पासति । ४. नन्दी : सूत्र १६ ५. नन्दी : सूत्र १८ गा० ६५ : मणपज्जवनाणं पुण, जणमणपरिचिंतिअत्थपागडणं
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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