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________________ निर्जरा पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी २ ५७१ गुरु-"नहीं मिलती, क्योंकि जीव अनुत्पन्न है-अनादि है।" शिष्य-"पहले जीव फिर कर्म, यह बात मिलती है या नहीं ?" गुरु-"नहीं मिलती, क्योंकि कर्म बिना जीव कहाँ रहा ? मोक्ष जाने के बाद तो जीव वापिस नहीं आता।" शिष्य-“पहले कर्म पीछे जीव, यह बात मिलती है या नहीं ?" गुरु-"नहीं मिलती, क्योंकि कर्म कृत होते हैं। जीव बिना कर्म को किसने किया ?" शिष्य-"दोनों एक साथ उत्पन्न हैं, यह बात मिलती है या नहीं ?" गुरु-"नहीं मिलती, क्योंकि जीव और कर्म को उत्पन्न करनेवाला कौन है ?" शिष्य-"जीव कर्मरहित है, यह बात मिलती है या नहीं ?" गुरु-"नहीं मिलती। यदि जीव कर्मरहित हो तो फिर करनी करने की चेष्टा ही कौन करेगा ? कर्मरहित जीव मुक्ति पाने के बाद वापिस नहीं आता।" शिष्य-"फिर जीव और कर्म का मिलाप किस तरह होता है ?" गुरु-"अपश्चातानुपूर्वी न्याय से जीव और कर्म का मिलाप चला आ रहा है। जैसे अंडे और मुर्गी में कौन पहले है और कौन पीछे, यह नहीं कहा जा सकता, वैसे ही प्रवाह की अपेक्षा जीव और कर्म का सम्बन्ध अनादि काल से चला आ रहा है।" स्वामीजी ने जो यह कहा है-'आठ करम छे जीव रे अनाद रा' उसका भावार्थ उपरोक्त वार्तालाप से अच्छी तरह समझा जा सकता है। इन कर्मों की उत्पत्ति आस्रव पदार्थ से होती है क्योंकि मिथ्यात्व आदि आस्रव ही जीव के कर्मागमन के द्वार हैं। __ जैसे वृक्ष से लगा हुआ फल पक कर नीचे गिर जाता है वैसे ही कर्म उदय में-विपाक अवस्था में आते हैं और फल देकर झड़ जाते हैं। कर्मों से बंधा हुआ संसारी जीव इस तरह कर्मों के झड़ने पर भी कर्मों से सर्वथा मुक्त नहीं होता क्योंकि वह आस्रवद्वारों से सदा कर्म-संचय करता रहता है। यह पहले बताया जा चुका है कि जीव असंख्यात प्रदेशी चेतन द्रव्य है। उसका एक-एक प्रदेश आस्रव-द्वार है'। जीव के एक-एक प्रदेश से प्रतिसमय अनन्तान्त कर्म लगते रहते हैं। एक-एक प्रकार के अनन्तानन्त कर्म एक-एक प्रदेश से लगते हैं। ये कर्म जैसे लगते हैं वैसे ही फल देकर प्रतिसमय अनन्त संख्या में झड़ते भी रहते हैं। इस तरह बंधने और झड़ने का चक्र चलता १. तेराद्वार : दृष्टान्तद्वार २. देखिए पृ० ४१७ टि० ३७ (२)
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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