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________________ ५७० नव पदार्थ संवर और निर्जरा ही ऐसे गुण हैं जिनसे सद्ज्ञानी और सम्यक्दृष्टि जीव को निर्वाण की प्राप्ति होती है। ___मोक्ष-मार्ग में निर्जरा पदार्थ को जो महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, वह उपर्युक्त विवेचन से भलीभाँति समझा जा सकता है। तप को चारित्र की तरह ही जीव का लक्षण कहा है'। तप निर्जरा का ही दूसरा नाम है। अतः निर्जरा जीव का लक्षण है। ___ कर्मों का एक देशरूप से आत्मा से छूटना निर्जरा है-“एकदेशकर्मसंक्षयलक्षणा निर्जरा" (तत्त्वा० १.४ सर्वार्थसिद्धि)। कर्मों के क्षय से आत्म-प्रदेशों में स्वाभाविक उज्ज्वलता प्रकट होती है। जीव की स्वच्छता निर्जरा है। इसीलिए कहा है-“देशतः कर्मों का क्षय कर देशतः आत्मा का उज्ज्वल होना निर्जरा है।" आगम में कहा है-“जब अनास्रवी जीव तप से संचित पापकर्मों का शोषण करता है तब पापकर्मों का क्षय होता है। जिस प्रकार एक महा तालाब हो, वह पानी से भरा हो और उसे रिक्त करने का सवाल हो तो पहले उस के स्रोतों को रोका जाता है और फिर उसके जल को उलीच कर उसे खाली किया जाता है, उसी प्रकार पापकर्म के आस्रव को पहले रोकने से संयमी करोड़ों भवों से संचित कर्मों को तपस्या द्वारा झाड़ सकता है। २. अनादि कर्मबंध और निर्जरा (गा० १-४) : गुरु और शिष्य में निम्न संवाद हुआ : शिष्य-“जीव और कर्म का आदि है, यह बात मिलती है या नहीं ?" उत्त० २८.११ : नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। वीरियं उवओगो य एवं जीवस्स लक्खणं ।। २. तेराद्वार : दृष्टान्तद्वार ३. उत्त० ३०.५-६ : जहा महातलायस्स सन्निरुद्ध जलागमे । उस्सिंचणाए तवणाए कमेणं सोसणा भवे।। एवं तु संजयस्सावि पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्मं तवसा निज्जरिज्जइ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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