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________________ निर्जरा पदार्थ (ढाल : १) २८. २६. ३०. अनन्तानुबंधी आदि कषाय की चौकड़ी तथा अन्य बहुत-सी प्रकृतियों के क्षयोपशम होने से जीव के देश- विरति उत्पन्न होती है और इसी तरह से चारों चारित्र प्राप्त होते हैं। चारित्रमोहनीय कर्म के विशेष क्षयोपशम से जीव के शुभ परिणाम तथा शुभ योगों का वर्तन होता है । कभी-कभी धर्म-ध्यान भी होता है परन्तु बिना कषाय के दूर हुए पूरा धर्म-ध्यान नहीं हो सकता । शुभ, ध्यान, शुभ परिणाम, शुभ योग, शुभ लेश्या और शुभ अध्यवसाय - ये सब उसी समय वर्तते हैं जब अंतराय कर्म का क्षयोपशम हो जाता है तथा मोहकर्म दूर हो जाता है। ३१. मोहनीयकर्म के क्षयोपशम होने से देश- विरति और चार चारित्र तथा क्षमा, दया आदि उत्पन्न होते हैं। ये उत्तम गुण है । ३२. देश- विरति और चारों चारित्र- ये गुणरूपी रत्नों की खान हैं। ये क्षायिक चारित्र की बानगी हैं । क्षयोपशम भाव ऐसा ही प्रधान है। ३३. चारित्र को विरति - संवर कहा गया है। उससे जीव पापों का निरोध करता है । पाप-क्षय होकर जीव उज्ज्वल हुआ, इस न्याय से इसे निर्जरा कहा है। दर्शनमोहनीय कर्म के क्षयोपशम होने से सच्ची एवं शुद्ध श्रद्धा उत्पन्न होती है। तीनों दृष्टियों में शुद्ध श्रद्धान है। क्षयोपशम भाव ऐसा उत्तम है । ३५. मिथ्यात्व मोहनीय कर्म के क्षयोपशम होने से मिथ्या दृष्टि उज्ज्वल होती है। जिससे जीव कई पदार्थों में ठीक-ठीक श्रद्धा करने लगता है । मिथ्यात्व मोहनीय के क्षयोपशम से ऐसा गुण उत्पन्न होता है । ३४. ५५६
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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