SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 583
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५८ नव पदार्थ २८. भला परिणाम पिण वरते तेहनें, भला जोग पिण वरते ताय हो। धर्म ध्यान पिण ध्यावें किण समें, ध्यावणी आवें मिटीयां कषाय हो।। २६. ध्यांन परिणाम जोग लेस्या भली, वले भला वरते अधवसाय हो। सारा वरते अंतराय षयउपसम हूआं, मोह करम अलगा हूवां ताय हो।। ३०. चोकडी अंताणुबंधी आदि दे, घणी प्रकृत्यां षयउपसम हुवें ताय हो। जब जीव रे देस विरत नीपजें, इण हिज विध च्यारू चारित आय हो।। ३१. मोहणी षयउपसम हुआं नींपनों, देस विरत ने चारित च्यार हो। वले षिमा दयादिक गुण नीपनां, सगलाइ गुण श्रीकार हो।। ३२. देस विरत ने च्यारूई चारित भला, ते गुण रतनां री खांन हो। ते खायक चारित री वानगी, एहवो षयउपसम भाव परधांन हो।। ३३. चारित ने विरत संवर कह्यों, तिण सूं पाप रूंधे छे ताय हो। पिण पाप झरी में उजल हुओं, तिणनें निरजरा कही इण न्याय हो।। ३४. दरसण मोहणी षयउपसम हुआं, नीपजें साची सुध सरधांन हो। तीनूं दिष्ट में सुध सरधान छे, ते तो षयउपसम भाव निधान हो।। ३५. मिथ्यात मोहणी षयउपसम हुआं, मिथ्या दिष्टी उजली होय हो। जब केयक पदार्थ सुध सरधलें, एहवो गुण नीपजें जें सोय हो।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy