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________________ जीव पदार्थ : टिप्पणी ७ ३३ कर्म-परमाणुओं का आत्म-प्रदेशों में संचय करता है। शरीर आदि की रचना इसी प्रकार होती हैं। इससे जीव पुद्गल है । यह व्याख्या सांसारिक जीव की अपेक्षा से है । एक बार गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से पूछा - "हे भगवन् ! जीव पुद्गली है या पुद्गल ?" भगवान ने उत्तर दिया- "हे गौतम! श्रोत्रादि इन्द्रियों वाला होने से जीव पुद्गल है। जीव का दूसरा नाम पुद्गल होने से वह पुद्गल है। सिद्ध पुद्गली नहीं हैं क्योंकि उनके इन्द्रियादि नहीं होती; परन्तु जीव होने से वे पुद्गल तो हैं ही।" संसारी प्राणी और सिद्ध जीव दोनों का यहाँ पुद्गल कहा गया है। इसका हेतु आगम में नहीं है। वह हेतु ऊपर बताये गये हेतु से भिन्न होना चाहिये - यह स्पष्ट है । जीव के लिये पुद्गल शब्द का प्रयोग बौद्ध पिटकों में भी मिलता है । (१४) मानव ( गा० १५) : द्रव्य मात्र उत्पाद्-व्यय-ध्रौव्य लक्षण वाले होते हैं । उत्पत्ति और विनाश केवल अवस्थाओं का होता है। एक अवस्था का नाश होता है दूसरी उत्पन्न होती है, परन्तु इस सृष्टि (उत्पाद) और प्रलय (व्यय) के बीच में भी ब्रह्मा स्वरूप आत्मा ज्यों-की-त्यों रहती है। इसके चेतन स्वभाव व असंख्यात प्रदेशीपन का विनाश नहीं होता । इस तरह नाना पुर्नजन्म करते रहने पर भी आत्मा तो पुरानी ही रहती है । इसलिये इसका 'मानव' नाम रखा गया है। मानव मा+नव । 'मा' का अर्थ है नहीं। 'नव' का अर्थ है नया । जीव नया न होकर अनादि है । वह 'पुराण' है - बराबर चला आता है इसलिये मानव है (मा निषेधे नवः प्रत्यग्रो मानवः अनादित्वात् पुराण इत्यर्थः) । (१५) कर्त्ता ( गा० १६ ) : आत्मा ही कर्त्ता है । कर्त्ता का अर्थ है कर्मों का कर्त्ता (कत ति कर्त्ता कर्मणाम्) । इस विषय को स्पष्ट करने के लिये हम यहाँ 'आत्म सिद्धि' नामक पुस्तक का कुछ अंश उद्धृत करते हैं : "जड़ में चेतना नहीं होती केवल जीव में ही चेतना होती है। बिना चेतन- प्रेरणा के कर्म, कर्म का बन्धन कैसे करेगा ? अतः जीव ही कर्म का बन्धन करता है क्योंकि चेतन प्ररेणा जीव के ही होती है। जीव के कर्म अनायास - स्वभाव से ही होते रहते है, यह भी ठीक नहीं है। जब जीव कर्म करता है तभी कर्म होते हैं। कर्म करना जीव की इच्छा पर निर्भर रहने से यह भी नहीं कहा जा सकता कि आत्मा सहज स्वभाव से ही १. भगवती ८.१०
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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