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________________ संवर पदार्थ ( ढाल : १) : टिप्पणी १३ ५४३ “हे गौतम ! असंख्य संयम-स्थान कहे गए हैं। इसी प्रमाण यावत् परिहारविशुद्धिक-संयत तक जानने चाहिए ।" "हे भगवन् ! सूक्ष्मसंपराय संयत के कितने संयम स्थान कहे गए हैं।" " हे गौतम! उसके अन्तर्मुहूर्त वाले असंख्य संयम स्थान कहे गए हैं" "हे भगवन् ! यथाख्यात संयत के कितने संयम स्थान कहे गए हैं ?" "हे गौतम! उसका अजघन्य और अनुत्कृष्ट एक संयम स्थान कहा गया है।" “हे भगवन् ! सामायिक संयत, छेदोपस्थापनीय संयत, परिहारविशुद्धिक संयत, सूक्ष्म पराय संयत और यथाख्यात संयत - इनके संयम स्थानों में किसकें संयम-स्थान किस से विशेषाधिक हैं ?" “हे गौतम! यथाख्यात संयत का अजघन्य और अनुत्कृष्ट एक संयम स्थान होने से सबसे अल्प है। उससे सूक्ष्मसंपराय संयत के अन्तर्मुहूर्त तक रहनेवाले संयम-स्थान असंख्यगुना हैं। उससे परिहारविशुद्धिक के संयम-स्थान असंख्यगुना हैं। उससे सामायिक संयत और छेदोपस्थापनीय संयत के संयम स्थान असंख्यगुना हैं और परस्पर समान हैं।" चारित्र - पर्यवों के विषय में निम्नलिखित संवाद मिलता है : "हे भगवन् ! सामायिक संयत के कितने चारित्र - पर्यव कहे गये हैं ?" "हे गौतम! उसके अनन्त चारित्र - पर्यव कहे गये हैं। इसी प्रकार यथाख्यात संयत तक जानना चाहिए ।" “हे भगवन् ! सामायिक संयत दूसरे सामायिक संयत के सजातीय चारित्रपर्यवों की अपेक्षा हीन होता है, तुल्य होता है या अधिक होता है ?" " हे गौतम! कदाचित् हीन होता है, कदाचित् तुल्य होता है और कदाचित् अधिक । और हीनाधिकत्व में छह स्थान पतित होता है ।" 1 “हे भगवन् ! एक सामायिक संयत छेदोपस्थापनीय संयत के विजातीय चारित्रपर्यवों के सम्बन्ध की अपेक्षा से क्या हीन होता है ?" "हे गौतम! कदाचित् हीन होता है, इत्यादि छह स्थान पतित होता है। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिक संयत के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए ।" “हे भगवन् ! एक सामायिक संयत सूक्ष्मसंपराय संयत के विजातीय चारित्रपर्यवों की अपेक्षा क्या हीन होता है ?" १. भगवती २५.७
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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