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________________ ५३६ ७. पाँच चारित्र और पाँच निर्ग्रन्थ संवर हैं (गा० १८ ) : स्वामीजी यहाँ दो बातें कहते हैं : १. पाँचों चारित्र संवर हैं । २. पाँचों निर्ग्रन्थ-स्थान संवरयुक्त हैं। नीचे इनपर क्रमशः प्रकाश डाला जाता है : १ पाँचों चारित्र संवर हैं : पाँच चारित्रों का वर्णन पहले किया जा चुका है (देखिए पृ० ५२३) । इन पाँच चारित्रों को आगम में पाँच संयम कहा है'। जो इन संयमों से युक्त होते हैं, उन्हें संयत कहा गया है। भगवती में संयतों के विषय में निम्न वर्णन मिलता है : नव पदार्थ "संयत पाँच प्रकार के हैं : (१) सामायिक संयत, (२) छेदोपस्थापनीय संयत, (३) परिहारविशुद्धिक संयत, (४) सूक्ष्मसंपराय संयत और (५) यथाख्यात संयंत । "जो सर्व सावद्य योगों का त्याग कर चार महाव्रतरूप अनुत्तर धर्म का त्रिविध से अच्छी तरह पालन करता है, वह 'सामायिक संयत' है । "जो पूर्व दीक्षा-पर्याय का छेदन कर अपनी आत्मा को पुनः पाँच महाव्रतरूप धर्म में उपस्थापित करता है, वह 'छेदोपस्थापनीय संयत' है । "जो पाँच महाव्रतरूप अनुत्तर धर्म का त्रिविध रूप से अच्छी तरह पाल करता हुआ परिहार-तप से विशुद्धि करता है, वह 'परिहारविशुद्धिक संयत' है । "जो लोभ के अणुओं का वेदन करता हुआ चारित्रमोह का उपशमन अथवा क्षय करता है, वह 'सूक्ष्मसंपराय संयत' है। “मोहनीयकर्म के उपशम या क्षय होने पर जो छद्मस्थ अथवा जिन होते हैं, उन्हें 'यथाख्यात संयत' कहते हैं ।" स्वामीजी कहते हैं इन संयतों के जो सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्म-संपराय और यथाख्यात चारित्र या संयम हैं, वे संवर हैं। २. १. ठाणाङ्ग ५.२, ४२७ : पंचविधे `संजमे पं० तं सामातितसंजमे छदोवद्वावणियसंजमे परिहारविसुद्धितसंजमे सुहुमसंपरागसंजमे अहक्खायचरित्तसंजमे । भगवती २५.७ : ' .
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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