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________________ ५०६ नव पदार्थ हो जाती है और यदि द्वार बंद हो तो रज प्रविष्ट नहीं होती और न चिपकती है; वैसे ही योगादि आस्रवों को सर्वतः अवरुद्ध कर देने पर संवृत्त जीव के प्रदेशों में कर्मद्रव्य का प्रवेश नहीं होता। "जिस तरह तालाब में सर्व द्वारों से जल का प्रवेश होता है, पर द्वारों को प्रतिरुद्ध कर देने पर थोड़ा भी जल प्रविष्ट नहीं होता; वैसे ही योगादि को सर्वतः अवरुद्ध कर देने पर संवृत्त जीव के प्रदेशों में कर्मद्रव्य प्रवेश नहीं होता। "जिस तरह नौका में छिद्रों से जल प्रवेश पाता है और छिद्रों को रूंध देने पर थोड़ा भी जल प्रविष्ट नहीं होता; वैसे ही योगादि आस्रवों को सर्वतः अवरुद्ध कर देने पर संवृत्त जीव के प्रदेशों में कर्मद्रव्य का प्रवेश नहीं होता।" संवर सर्व आस्रवों का निरोधक होता है या केवल पापास्रवों का यह एक प्रश्न रहा। यह मतभेद संवर की भिन्न-भिन्न परिभाषाओं से स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। एक परिभाषा के अनुसार-“जो सर्व आस्रवों के निरोध का हेतु होता हैं, उसे संवर कहते हैं।" दूसरी परिभाषा के अनुसार-“जो अशुभ आस्रवों के निग्रह का हेतु है, उसे संवर कहा जाता है।" १. नवतत्त्वसाहित्यसंग्रह : श्रीहेमचन्द्रसूरिकृत सप्ततत्त्वप्रकरणम् ११८-१२२ : यथा चतुष्पथस्थस्य, बहुद्वारस्य वेश्मनः । अनावृतेषु द्वारेषु, रजः प्रविशति ध्रुवम्।। प्रविष्टं स्नेहयोगाञ्च, तन्मयत्वेन बध्यते। न विशेन्न च बध्यते, द्वारेषु स्थगितेषु च।। यथा वा सरसि कापि, सर्वैारैर्विशेज्जल्म्। तेषु तु प्रतिरुद्धेषु, प्रविशेन्न मनागपि।। यथा वा यानपात्रस्य, मध्ये रन्धैर्विशेज्जलम् । कृते रन्ध्रपिधाने तु, न स्तोकमपि तद्विशेत् ।। योगादिष्वाश्रवद्वारेष्वेवं रुद्धेषु सर्वतः । कर्मद्रव्यप्रवेशो न, जीवे संवरशालिनी।। २. वही : १११ : सर्वेषामाश्रवाणां यो, रोधहेतुः स संवरः । ३. वही : देवेन्द्रसूरिकृत नवतत्त्वप्रकरणम् : ४१ : तो असुहासवनिग्गहहेऊ इह संवरो विणिद्दिट्ठो।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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