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________________ ४७४ २०. चार संज्ञाएँ (गा० ४९ ) चेतना - ज्ञान का असातावेदनीय और मोहनीय कर्म के उदय से पैदा होने वाले विकार से मुक्त होना संज्ञा है' । आचार्य पूज्यपाद लिखते हैं- “ आहारादि विषयों की अभिलाषा को संज्ञा कहते हैं ।" संज्ञाएँ चार हैं : (१) आहारसंज्ञा : आहार ग्रहण की अभिलाषा को आहारसंज्ञा कहते हैं । (२) भयसंज्ञा : भय मोहनीयकर्म के उदय से होनेवाला त्रासरूप परिणाम भयसंज्ञा है । (३) मैथुनसंज्ञा : वेद मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न होनेवाली मैथुन अभिलाषा मैथुनसंज्ञा है । (४) परिग्रहसंज्ञा : चारित्र मोहनीय के उदय से उत्पन्न परिग्रह अभिलाषा को परिग्रह संज्ञा कहते हैं । जीव संज्ञाओं से कर्मों को आत्म-प्रदेशों में खींचता है। इस तरह कर्म की हेतु संज्ञाएँ आस्रव हैं। संज्ञाएँ जीव-परिणाम हैं। अतः आस्रव जीव-परिणाम है- जीव है । आस्रव रूप संज्ञाओं को भगवान ने अवर्ण कहा है। अतः अन्य आस्रव भी अवर्ण-अरूपी ठहरते हैं। भगवती सूत्र में दस संज्ञाएँ कही गयी हैं। एक बार गौतम ने पूछाभगवन् ! संज्ञाएँ कितनी हैं ?" भगवान महावीर ने उत्तर दिया- " संज्ञाएँ दस हैं-. १. २. तत्त्वा० २.२४ सर्वार्थसिद्धि ३. देखिए पृ० ४१० टि० ३२ ४. ठाणाङ्ग ४.४. ३५६ टीका : ठाणाङ्ग ४.४.३५६ टीका : संज्ञा - चैतन्यं, तञ्चासातवेदनीयमोहनीयकम्र्म्मो दयजन्यविकारयुक्तमाहारसंज्ञादित्वेन व्यपदिश्यत भयसंज्ञा - भवमोहनीयसम्पाद्यो जीवपरिणामो ५. वही : ५. नव पदार्थ मैथुनसंज्ञा-वेददियजनितो मैथुनाभिलाषः ६. वही : परिग्रहसंज्ञा - चारित्रमोहोदयजनितः परिग्रहाभिलाषः ७. देखिए पृ० ४१० टि० ३२ भगवती ७.८
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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