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आस्त्रव पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी : २१
(१) आहार, (२) भय, (३) मैथुन, (४) परिग्रह, (५) क्रोध, (६) मान, (७) माया, (८) लोभ, (६) लोक' और (१०) ओघ' ।"
ये सभी जीव- परिणाम हैं।
कहा है- "चार संज्ञा, तीन लेश्या, इन्द्रियवशता, आर्तरौद्र-ध्यान और दुष्प्रयुक्त ज्ञान और दर्शनचारित्रमोहनीय कर्म के समस्त भाव पापास्रव के कारण हैं।"
२१. उत्थान, कर्म बल, वीर्य, पुरुषकार - पराक्रम ( गा० ५०-५१ ) :
गोशालक सर्वभाव नियत मानता था । उसकी धर्म-प्रज्ञप्ति में उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम का स्थान नहीं था । भगवान महावीर की धर्म-विज्ञप्ति थी - उत्थान है, कर्म है, बल है, वीर्य है, पुरुषकार-पराक्रम है, सर्वभाव नियत नहीं है । उत्थान, बल, वीर्य आदि के व्यापार सावद्य और निरवद्य दोनों प्रकार के होते
हैं ।
सावद्य उत्थान, बल, वीर्य आदि से जीव के पाप कर्मों का संचार होता है और निरवद्य उत्थान, बल, वीर्य आदि से पुण्य कर्म लगते हैं। इस तरह उत्थान, बल, वीर्य आदि के व्यापार आस्रव हैं, ।
एक बार गौतम ने पूछा - "भगवन् ! उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार-पराक्रम, कितने वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाले हैं ?"
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भगवती ७.८ टीका :
एवं शब्दार्थगोचरा विशेषावबोधक्रियैव संज्ञायतेऽनयेति लोकसंज्ञा
भगवती ७.८ टीका :
मतिज्ञानावरणक्षयोपशमाच्छब्दाद्यर्थगोचरा सामान्यावबोधक्रियैव संज्ञायते वस्त्वनयेत्योघ
संज्ञा....
पञ्चास्तिकाय २.१४० :
सण्णाओ य तिलेस्सा इंदियवसदा य अत्तरूदाणि ।
णाणं च दुप्पउत्तं मोहो पावप्पदा होंति । ।
उपासकदशा : ६
गोसालस्स मङ्खलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती, नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा नियमा सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णत्ती, अत्थि उट्ठाणे इ वा, कम्मे इ वा, बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा अणियया सव्वभावा ।