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________________ आस्त्रव पदार्थ (टाल : २) : टिप्पणी : १६ ४७३ (५) वनस्पतिकाय असंयम : वनस्पतिकाय जीव (वृक्ष, लता, आलू, मूली आदि) की हिंसा का अत्याग या उनके प्रति असंयम की वृत्ति। (६) द्वीन्द्रिय असंयम : दो इन्द्रिय वाले जैसे-सीप, शंख आदि की हिंसा का अत्याग या उनके प्रति असंयम की वृत्ति। (७) त्रीन्द्रिय असंयम : तीन इन्द्रिय वाले जीव जैसे-कुन्थु, पिपीलिका आदि की हिंसा का अत्याग या उनके प्रति असंयम की वृत्ति। (८) चतुरिन्द्रिय असंयम : चार इन्द्रिय वाले जीव जैसे-मक्षिका, कीट, पतंग आदि की हिंसा का अत्याग या उनके प्रति असंयम की वृत्ति। (६) पंचेन्द्रिय असंयम : पाँच इन्द्रिय वाले जीव जैसे-मनुष्य, पशु, पक्षी आदि तिर्यञ्च की हिंसा का अत्याग या उनके प्रति असंयम की वृत्ति। (१०) अजीवकाय असंयम : बहुमूल्य अजीव वस्तु जैसे-स्वर्ण, आभूषण, वस्त्र आदि का प्रचुर संग्रह और उनके भोग की वृत्ति। (११) प्रेक्षा असंयम : बिना देख-भाल किए सोना, बैठना, चलना आदि अथवा बीज, हरी घास, जीव-जन्तु युक्त जमीन पर सोना; बैठना आदि। (१२) उपेक्षा असंयम : पाप कर्म में प्रवृत्त को उत्साहित करने की वृत्ति। (१३) अपहृत्य असंयम : मल, मूत्रादि को असावधानी पूर्वक विसर्जन करने की वृत्ति। (१४) अप्रमार्जन असंयम : स्थान, वस्त्र, पात्र आदि को बिना प्रमार्जन काम में लाने की वृत्ति। (१५) मन असंयम : मन में ईर्ष्या, द्वेष आदि भावों के पोषण की वृत्ति। (१६) वचन असंयम : सावद्य वचनों के प्रयोग की वृत्ति। (१७) काय असंयम : गमनागमन आदि क्रियाओं में असावधानी। __ असंयम का अर्थ है-अविरति । अविरति को भाव शस्त्र कहा गया है। अतः वह स्पष्टतः आत्म-परिणाम है। अविरति आस्रव है अतः वह भी जीव-परिणाम-जीव है। १. ठाणाङ्ग १०.१.७४३ : सत्थमग्गी विसं लोणं सिणेहो खारमंबिलं । दुप्पउत्तो मणोवायाकाया भावो त अविरती।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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