________________
नव पदार्थ
४. समकित (सम्यक्तव) :
पदार्थों में, तत्त्वों में, वस्तुओं में सम्यक्-यथातथ्य श्रद्धा, प्रतीति, रुचि, दृष्टि या विश्वास का होना समकित अथवा सम्यक्त्व है। मोक्ष-मार्ग में मनुष्य प्रमुख रूप से किन-किन बातों में विश्वास रखे, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। यहाँ इसका कुछ विशद विवेचन किया जाता है।
यह संसार एक तत्त्वमय वस्तु है। यह कोई माया, भ्रम या कल्पना नहीं। संसार का अस्तित्व है-उसकी सत्ता है। लोक-रचना और व्यवस्था में केवल दो पदार्थ (सद्भूत वस्तु) एक जीव ओर दूसरा अजीव का हाथ है। अजीव पदार्थ पाँच हैं-(१) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, (३) आकाशास्तिकाय, (४) काल और (५) पुद्गल । आकाश अनन्त है। इस अनन्त आकाश के जितने क्षेत्र में जीव और अजीव पदार्थ रहते हैं, उसे विश्व या लोक कहते हैं। इस लोक के बाद अलोक हैं, जिसमें शून्य आकाश है।
जीव चेतन पदार्थ है'। पुद्गल जड़ पदार्थ है। इनके स्वभाव एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न-विपक्षी हैं | अनादि काल से जीव और अजीव पुद्गल (कर्म) दूध और पानी की तरह एक क्षेत्राबगाही-परस्पर ओतप्रोत हो रहे हैं। इस प्रकार कर्मों के साथ-जड़ पदार्थ के साथ बंधा हुआ जीव नाना प्रकार के सुख-दुःख का अनुभव करता है। जिन कर्मों का बन्धन फलावस्था में दुःख का कारण हैं, वे पाप कहलाते हैं। जिनका बंधन सांसारिक सुखों का कारण हैं, वे कर्म पुण्य कहलाते हैं। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और
१.
उत्त० ३६ : २
जीवा चेव अजीवा य एस लाए वियाहिए। अजीवदेसमागासे अलोगे से वियाहिये ।।
उत्त० २८ : ७
धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुग्गल-जन्तवो। एस लोगो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं।।
३.
उत्त० २८ : १०
x x x जीवे उवओगलक्खणो। नाणेणं दंसणेणं च सुहेण य दुहेण य।।