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________________ आस्त्रव पदार्थ (ढाल : २) : टिप्पणी : १४ सर्वथा अभाव है यह शास्त्र का तात्पर्य नहीं है क्योंकि कारण के अनुरूप ही कार्य होता है। मिट्टी से मिट्टी का ही घड़ा बनता है- सोने का नहीं बनता । आठ प्रकार की कर्म प्रकृतियों का उदय चतुःस्पर्शी पौद्गलिक माना गया है इसलिए उससे उत्पन्न होनेवाले पदार्थ भी चतुःस्पर्शी पौद्गलिक ही होंगे: एकांत अरूपी और एकांत अपौद्गलिक नहीं हो सकते। मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय और योग आठ प्रकार की कर्म की प्रकृतियों के उदय से उत्पन्न होते हैं। इसलिए अपने कारण के अनुसार ये रूपी और चतुःस्पर्शी पौद्गलिक हैं एकांत अरूपी और अपौद्गलिक नहीं है तथापि जीवांश की मुख्यता को लेकर शास्त्र में इन्हें जीवोदय निष्पन्न कहा है ।" उपर्युक्त उद्धरण में योग को चतुःस्पर्शी कहा गया है पर आचार्य जवाहिरलालजी ने उक्त अधिकार में ही एकाधिक स्थानों में योग को अष्टस्पर्शी स्वीकार किया है - जैसे- "आठ .....आत्मा .... में कषाय और योग क्रमशः चतुःस्पर्शी और अष्टस्पर्शी पुद्गल हैं -~~*२ ।” • संसारी आत्मा रूपी भी होता है इसलिए कषाय और योग के क्रमशः चतुःस्पर्शी और अष्टास्पर्शी रूपी होने पर भी आत्मा होने में कोई सन्देह नहीं ।" “मिथ्यात्व, कषाय और योग को चतुःस्पर्शी और काययोग को अष्टस्पर्शी पुद्गल माना जाता है ....... | " ४६३ टिप्पणी १२ में टीका के आधार से योग का जो विस्तृत विवेचन दिया गया है उससे स्पष्ट है कि भाव योग ही आस्रव है; द्रव्ययोग नहीं । भाव योग कदापि रूपी नहीं हो सकता । १४. आस्रवों के सावद्य - निरवद्य का प्रश्न ( गा० २१-२२ ) - इन गाथाओं में २० आस्रवों का सावद्य-निरवद्य की दृष्टि से विवेचन है । स्वामीजी के मत से १६ आस्रव एकान्त सावद्य हैं। उनसे केवल पाप का आगमन होता है। योग आस्रव, मन प्रवृत्ति आस्रव, वचन प्रवृत्ति आस्रव और काय प्रवृत्ति आस्रव - ये चारों आस्रव सावद्य और निरवद्य दोनों प्रकार के हैं। दोनों प्रकार के होते हैं, यह पहले बताया जा चुका है। शुभ योग निरवद्य हैं और उनसे पुण्य का संचार होता है। अशुभ योग सावद्य हैं और उनसे पाप का संचार होता है। योग की शुभाशुभता की अपेक्षा से उक्त चारों आस्रव सावद्य-निरवद्य दोनों हैं । १. सद्धर्ममण्डनम् : आस्रवाधिकार : बोल १८ २. ३. ४. वही बोल १५ : वही : बोल १६ वही : बोल ५
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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