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नव पदार्थ
सहारे की तरह, मनोयोग है।" अथवा मन का योग-करना, कराना और अनुमतिरूप व्यापार योग है। इसी तरह वाक्योग और काय योग है।"
अभयदेव सूरि ने अन्यत्र लिखा है-“मननं मन:-मनन करना मन है। औदारिक आदि शरीर जीव शरीर की प्रवृत्ति द्वारा ग्रहण किये हुए मनोद्रव्य के समुदाय की सहायता से होनेवाला जीव का मनन रूप व्यापार मनोयोग है । भावरूप व्युत्पत्त्यर्थ को लेकर यह भाव-मन का कथन है।
"औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर के व्यापार द्वारा ग्रहण किये हुए भाषाद्रव्य के समूह की सहायता से जीव का व्यापार वचनयोग है।
___ "जिसके द्वारा इकट्ठा किया जाता है उसे काय-शरीर कहते हैं। उसके व्यापार को कायव्यायाम कहते हैं। वह औदारिकादि शरीरयुक्त आत्मा के वीर्य की परिणति विशेष है।" १३. द्रव्य योग अष्टस्पर्शी हैं और कर्म चतुर्पर्शी (गा० १९-२०) :
जो द्रव्य काययोग आदि को आस्रव मानते हैं उनके अनुसार भी आस्रव कर्म नहीं। द्रव्य काययोग अष्टस्पर्शी हैं जब कि कर्म चतुर्पर्शी हैं। अतः उनके द्वारा कहा जानेवाला द्रव्य काययोग आस्रव कर्म नहीं हो सकता।
आचार्य जवाहिरलालजी लिखते हैं-"मिथ्यात्व, कषाय, अव्रत और योग को जीवांश की मुख्यता को लेकर जीवोदय निष्पन्न कहा है। ये एकान्त जीव हैं इनमें पुदगलों का
१. ठाणाङ्ग ३.१.१२४ टीका :
मनसा करणेन युक्तस्य जीवस्य योगो-वीर्यपर्यायो दुर्बलस्य यष्टिकाद्रव्यवदुपुष्टम्भकरो मनोयोग इति, .... मनसो वा योगः - करणकारणअनुमतिरूपो व्यापारो मनोयोगः, एवं
वाग्योगोऽपि, एवं काययोगोऽपि २. वही १.१६ की टीका :
‘एगे मणे त्ति-मननं मनः औदारिकादिशरीरव्यापारातमनोद्रव्यसमूहसाचिव्याज्जीवव्यापारो,
मनोयोग इति भावः ३. वही १.२० की टीका :
'एगा वइ' त्ति वचनं वाक्-औदारिकवैक्रियाहारकशरीरव्यापाराहृतवागद्रव्यसमूह
साचिव्याज्जीवव्यापारो, वाग्योग इति भावः ४. वही १.२१ टीका : 'एगे कायवायामे' त्ति चीयत इति कायः-शरीरं तस्य व्यायामो व्यापारः कायव्यायामः औदारिकादिशरीरयुक्तस्यात्मनो वीर्यपरिणतिविशेष इति भावः ।