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________________ ४६० नव पदार्थ सेवन पुण्यस्रव है। अयतनापूर्वक सेवन पापास्रव है। गृहस्थ द्वारा इन सबका सेवन पापास्रव है। सूची-कुशाग्र आस्रव बीसवाँ आस्रव है। स्वामीजी ने मिथ्यात्व आस्रव से लेकर सूची-कुशाग्र आस्रव तक बीसों आस्रवों की परिभाषाएँ दी हैं। ये परिभाषाएँ गा० १-१७ में प्राप्त हैं। इन परिभाषाओं का विवेचन इस टिप्पणी के साथ समाप्त होता है। उक्त गाथाओं में एक-एक आस्रव की परिभाषा देने के साथ-साथ स्वामीजी यह सिद्ध करते गये हैं कि अमुक आस्रव किस प्रकार जीव-पर्याय है और वह किसी प्रकार अजीव नहीं हो सकता। स्वामीजी की सामान्य दलील है "मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग, हिंसा करना, झूठ बोलना, चोरी करना, मैथुन का सेवन करना, ममता करना, पाँचों इन्द्रियों की प्रवृत्ति करना, मन योग, वचन योग, काय योग, भंड-उपकरण की अयतना, सूची-कुशाग्र का सेवन-ये सब जीव के भाव हैं, जीव ही उन्हें करता है, वे जीव के ही होते हैं। मिथ्यात्व आदि आस्रव हैं। अतः वे जीव-भाव हैं, जीव ही उनका सेवन करता है, वे जीव के ही होते हैं अतः जीव-परिणाम हैं, जीव हैं।" स्वामीजी ने कषाय आस्रव और योग आस्रव को जीव सिद्ध करने के लिए इस सामान्य दलील के उपरान्त आगम-प्रमाण की ओर भी संकेत किया है। आगम में आठ आत्मा में कषाय आत्मा का स्पष्ट उल्लेख है। आठ आत्माओं में द्रव्य आत्मा मूल है। अवशेष सात आत्माएँ भाव आत्माएँ हैं। वे द्रव्य आत्मा के लक्षण-स्वरूप, उसके पर्याय-परिणामस्वरूप हैं। इस तरह कषाय आस्रव आगम-प्रमाण से जीव-भाव है। आगम में जीव-परिणामों में कषाय-परिणाम का उल्लेख है। कर्मों के उदय से जीव में जो भाव उत्पन्न होते हैं उनमें से कषाय एक है। इससे भी उपर्युक्त बात सिद्ध होती है। कषाय आत्मा की तरह ही आगम में योग का भी उल्लेख है। दस जीव-परिणामों में योग-परिणाम है। जीव के औदयिक भावों में योग का उल्लेख है। इस तरह योग आस्रव स्पष्टतः जीव-परिणाम-जीव-भाव-जीव सिद्ध होता है। १२. द्रव्य योग, भाव योग (गा० १८) : योग दो तरह के होते हैं-द्रव्य-योग और भाव-योग। मन, वचन और काय द्रव्य-योग हैं। उनके व्यापार भाव-योग हैं। द्रव्य-योग रूपी हैं-वर्ण, गंध, रस और स्पर्श युक्त होते हैं। भाव-योग जीव-परिणाम हैं अतः अरूपी-वर्णादि रहित हैं। द्रव्य योगों १. २. देखिए पृ० ४०५ टि० २४; पृ० ४०६ टि० २६ वही
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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