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________________ ४५४ स्वाद अस्वाद के प्रति राग-द्वेष का अत्याग असंवर है- 'अविरति आस्रव है। त्याग संवर है। स्वाद-अस्वाद के प्रति राग-द्वेष करना अशुभ योगास्रव है। राग-द्वेष का टालना शुभ योगास्रव है'। (५) स्पर्शनेन्द्रिय आस्रव : जो स्पर्श का अनुभव करे उसे स्पर्शनेन्द्रिय कहते हैं। अच्छे-बुरे स्पर्शो में राग-द्वेष विकार है । विकार मोह के उदय से उत्पन्न भाव है। स्पर्शनेन्द्रिय दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से प्राप्त भाव है। स्पर्श का अनुभव करना स्पर्शनेन्द्रिय का विषय है। उसमें राग-द्वेष अशुभ परिणाम है। उत्तराध्ययन (३२.७४) में कहा है : नव पदार्थ कायस्स फासं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु | तं दोसउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो ।। स्पर्श काय ग्राह्य है। स्पर्श शरीर का विषय है। यह जो स्पर्श का प्रिय लगना है, उसे राग का हेतु कहा है और यह जो स्पर्श का अप्रिय लगना है, उसे द्वेष का हेतु । जो दोनों में समभाव रखता है वह वीतराग है। अच्छे-बुरे स्पर्श के प्रति राग-द्वेष का अत्याग असंवर है - अविरति आस्रव का त्याग संवर है। स्पर्श के प्रति राग-द्वेष करना अशुभ योगास्रव है। राग-द्वेष का वर्जन शुभ योगास्रव है । कहा है-“कामभोग-शब्द, रूपादि के विषय समभाव-उपशम के हेतु नहीं हैं और नये विकार के हेतु हैं । किन्तु जो उनमें परिग्रह - राग-द्वेष करता है वही मोह - राग-द्वेष के कारण विकार को उत्पन्न करता है ।" ९. मन योग, वचन योग और काय योग ( गा० १४ ) : बीस आस्रवों में पाँचवाँ आस्रव योग आस्रव है। योग के तीन भेद होते हैं- (१) मन योग (२) वचन योग और (३) काय योग । इन्हीं भेदों को लेकर क्रमश: १६वाँ, १७वाँ और १. पाँच इन्द्रियानी ओलखावण २. वही ३. उत्त० ३३.१०१ : न कामभोगा समयं उवेन्ति, न यावि भोगा विगइं उवेन्ति । जे तप्पओसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगई उवेइ ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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