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________________ आस्त्रव पदार्थ (टाल : २) : टिप्पणी : ७ ४५१ करने, उनसे सावद्य कर्तव्य करने से पाप लगता है। मोहनी कर्म के उदय से कर्तव्य करने में पाप है, इन में नहीं।" साधु के कल्पनीय भण्डोपकरण, वस्त्र आदि परिग्रह नहीं। उनमें मूर्छा परिग्रह है। गृहस्थ के पास जो कुछ होता है वह सब परिग्रह है क्योंकि उसका ग्रहण मूर्छापूर्वक ही होता है। कहा है "निर्ग्रन्थ मुनि नमक, तैल, घृत और गुड़ आदि पदार्थों के संग्रह की इच्छा नहीं करता। संग्रह करना लोभ का अनुस्पर्श है। जो लवण, तैल, घी, गुड़ अथवा अन्य किसी भी वस्तु के संग्रह की कामना करता है वह गृहस्थ है-साधु नहीं। "वस्त्र, पान, कम्बल, रजोहरण आदि जो भी हैं उन्हें मुनि संयम की रक्षा के लिए रखते और उनका उपयोग करते हैं। त्राता महावीर ने वस्त्र, पात्र आदि को परिग्रह नहीं कहा है। उन्होंने मूर्छा को परिग्रह कहा है। "बुद्ध पुरुष अपने शरीर पर भी ममत्वभाव नहीं रखते।" पदार्थों का संग्रह करना अथवा मूर्छाभाव परिग्रह आस्रव है। १. पाँच भाव की चर्चा २. दसवैकालिक ६.१८-२२ : विडमुडभेइमं लोणं, तेल्लं सप्पिं च फााणियं । न ते सन्निहिमिच्छंति, नायपुत्तवओरया।। लोभस्सेसणुफासे, मन्ने अन्नयरामपि। जे सिया सन्निहीकामे, गिही पव्वइए न से।। जं पि वत्थं व पायं वा, कंबलं पायपुंछणं । तं पि संजमलज्जट्ठा, धारति परिहरंति य।। न सो परिग्गहो वुत्तो, नायपुत्तेण ताइणा। मुच्छा परिग्गहो बुत्तो, इइ वु महेसिणा।। सव्वत्थुवहिणा बुद्धा, संरक्षण परिग्गहे। अवि अप्पणो वि देहम्मि, नायरंति ममाइयं ।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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