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________________ आस्त्रव पदार्थ (ढाल : २) ४४५ ५६. आस्रव घटने से संवर बढ़ता है, संवर घटने से आस्रव बढ़ता है। कौन द्रव्य घटता और कौन द्रव्य बढ़ता है-यह अच्छी तरह समझो। आस्रव संवर से जीव के भावों की ही हानि-वृद्धि होती है (गा० ५६-५८) ५७. जीव के औदयिक भाव अव्रत के घटने से क्षयोपशम भावव्रत की वृद्धि होती है। इस तरह जीव के ही भाव घटते और बढ़ते हैं; इस न्याय से आस्रव को जीव कहा ५८. इस तरह असंयम के जो सत्रह भेद हैं वे अविरति आस्रव हैं। इन आस्रवों को निश्चय ही जीव समझो। सत्रह प्रकार के संयम को जिन भगवान ने संवर कहा है। इन्हें भी जीव के ही लक्षण समझो। ५६. आस्रव को जीव श्रद्धाने के लिए यह जोड़ पाली शहर में सं० १६५५ की आश्विन सुदी १४ मंगलवार को की रचना-स्थान और समय
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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